मई 25, 2021

दीवानापन है या कुछ और ( ब-कलम-ख़ुद ) डॉ लोक सेतिया

   दीवानापन है या कुछ और ( ब-कलम-ख़ुद ) डॉ लोक सेतिया

किसी ने नहीं पूछा और कौन किसलिए पूछेगा मैं क्या हूं कौन हूं। सच्ची बात तो यही है अब दुनिया को किसी को समझने की चाहत क्या ज़रूरत नहीं फुर्सत भी नहीं। बस हर कोई खुद को लेकर परेशान है हैरान है अपने से अनजान है। सोचा कोई नहीं समझने वाला तो दिल से दिल की बात करते हैं फिर इक बार खुद से मुलाकात करते हैं। लिखना ज़रूरी है कभी दुनिया की भीड़ में गुम हो गए तो जैसे बच्चों की जेब में नाम पता लिख कर रखा होता है जिस किसी को मिले घर स्कूल पहुंचा सकता है। अक्सर लोग पूछते हैं आपका नाम क्या पहचान क्या है किसी दिन मुझे बताएंगे आपका वजूद क्या है। मंज़िल-ए - मकसूद क्या है। मुझे चाह थी ज़रूरत थी घड़ी दो घड़ी कोई प्यार की बात करता मुझसे भी। मगर दुनिया तिजारत करती है मुहब्बत बिकती है नीलाम होकर बदले में खोटे झूठ वाले सिक्कों के दाम पर सच का मोल यहां दो कौड़ी भी नहीं और सच्चाई का तलबगार मिलता ही नहीं। सच की बात करने वाले हैं दुनिया में सच से बचते हैं घबराते हैं झूठ से मिलते हैं हाथ मिलाते हैं गले लगाकर साथ निभाते हैं। रिश्तों दोस्ती दुनियादारी के नातों में तमाम लोग तराज़ू लिए खड़े मिले। मुझसे मेरी आज़ादी लेकर अपने पिंजरे में बंद कर मुझे अपना बनाकर रखना चाहते थे और मुझे सोने वाले पिंजरे भी कभी नहीं भाये। कीमत सस्ती महंगी की बात नहीं मुझे तो अपनी अनमोल चाहत को बिना किसी मोल बिकना पसंद था कोई चाहत का तलबग़ार मिलता जो कभी। 
 
बड़ी देर बाद समझे हैं किसी से मुहब्बत की चाहत करते करते खुद से कभी मुहब्बत ही नहीं की। मेरे भीतर अथाह सागर है प्यार का जिसको दुनिया ने कभी देखा समझा नहीं खुद अपने आप को प्यार करना ज़रूरी है बाहर किसी से कभी मांगने से नहीं मिलता है प्यार ज़माने में। सुनते थे कोई कस्तूरी मृग होता है जो दौड़ता रहता है कस्तूरी की सुगंध के पीछे जबकि वास्तव में कस्तूरी खुद उसके भीतर छुपी रहती है। मुझे अपने भीतर झांकना होगा खुद को तलाशना समझना होगा और खुद से दिल लगाना होगा। बेशक मुझे हंसना मुस्कुराना गुनगुनाना होगा ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जीना होगा मौत आएगी जब ख़ुशी से गले लगाना होगा मौत से भी नाता निभाना होगा। ज़िंदगी को अलविदा कहना ज़रूरी है मगर ज़िंदा हैं तो खुलकर जीना भी ज़रूरी है। ज़िंदगी इक फ़लसफ़ा है घुट घुट कर जीना ज़िंदगी नहीं जीने की मज़बूरी है। 
 







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