मई 15, 2021

कुछ बज़ुर्गों की कही कुछ अपनी आपबीती ( इधर उधर की खरी खोटी ) डॉ लोक सेतिया

कुछ बज़ुर्गों की कही कुछ अपनी आपबीती ( इधर उधर की खरी खोटी ) 

                                         डॉ लोक सेतिया 

    कुछ भी नई बात नहीं है कितनी बार दोहराई गई बातें हैं। सबने अपने अपने ढंग से बताई समझी मैं उन्हीं बातों को अपने अलग अंदाज़ में पेश करने की कोशिश करूंगा। दादाजी कहते थे समझदार पत्नी कभी पति से डांट नहीं खाती है। कहानी बनाकर बातें समझाया करते थे इक आदमी को सदा उस अवसर की तलाश रहती थी जब पत्नी कोई भूल करे और वो उसको डांट लगाएं मगर ऐसा नहीं मिलता था मौका कभी। इक दिन सुबह सुबह तालाब से मछली पकड़ घर लाये और पत्नी को देकर बोले रात को ये ही खानी है मुझे और चले गए घर से देर शाम तक लौटे नहीं जानबूझ कर। रात होने लगी थी घर आकर बोले भूख लगी है खाना बन गया क्या पत्नी ने झट से मछली की भाजी और रोटी बनाकर सामने परोस दी। पति कहने लगे ये तो तरी वाली है मुझे सूखी भुनी हुई खानी थी पत्नी बोली अभी लाती हूं और लेकर सामने रख दी। पति ने कहा इतनी बड़ी मछली सारी बनानी थी कुछ बचाकर कच्ची रखनी थी पत्नी ने बताया थोड़ी रखी है बचाकर। समझदार पत्नी को डांटना नहीं पड़ता खुद सोच लेती है घर परिवार की ज़रूरत कब कैसे पूरी करनी है। क्या ये बात आपको पुरुषवादी सोच भर लगती है नहीं जनाब ये आप पर भी लागू होती है कुछ अपने आज के लिए कुछ किसी की सहायता के लिए कुछ कल  की भविष्य की चिंता कर बचाकर रखना चाहिए। सुई छोटी सी होती है सिलने का भी काम करती है जोड़कर रखती है और उसी से कोई उधेड़ने का भी काम ले सकता है। इक कहावत थी कि पुरुष कस्सी लेकर घर को ढाने का काम भी मुश्किल से कर सकता है और महिला चाहे तो सुई से सब बना बिगाड़ सकती है। 

चलो इक और नासमझी की बात समझने की कोशिश करते हैं। कोई पति पत्नी हमेशा एक दूसरे से खुश नहीं रहते हैं। कुछ साल बाद लगने लगता है शादी कर मुसीबत मोल ले ली अकेले अच्छे थे मगर बिना साथ चैन से नहीं रह पाते हैं। क्या सोचा था ये क्या निकले हैं लगता है काश जैसा चाहते साथी मिलता मगर जैसा सब चाहते हैं कोई हो नहीं सकता क्योंकि खुद भी कब तक किसी और की इच्छानुसार बन सकते हैं। जब जीवन साथी का चुनाव करना था तब लड़का लड़की या उनके परिवार वाले अन्य सभी बातों को देखते हैं किसकी पसंद ख़्वाहिश क्या क्या है कोई पूरी कर सकता है या नहीं संभव इसकी बात की ही नहीं जाती। पत्नी उम्मीद लेकर आती है ससुराल में उसी का शासन होगा और पति और परिवार वाले बहु से कर्तव्य निभाने जैसी अपेक्षाएं रखते हैं। पूरी तरह खरा साबित कोई कभी नहीं हो सकता है पति के पास अलादीन का चिराग नहीं होता और पत्नी के पास दस हाथ नहीं होते हर समय सभी उम्मीदों पर खरा कोई नहीं हो सकता है। घर में तालमेल बिठाने को ज़रूरी है पत्नी चाहे कितनी जली कटी सुनाये आपको उसकी तारीफ कर खुश रखना ज़रूरी है पत्नी भी समझती है ये जैसा भी है निभाना मज़बूरी है। करीब रहना मुसीबत और सही नहीं जाती दूरी है। तभी कहते हैं शादी इक समझौता है निभाना पड़ता है जो है उसी से घर बसना मुस्कुराना पड़ता है। ये किस्सा इक मिसाल है असली बात और है बड़ी ज़रूरी है। 

इक दार्शनिक कहते हैं राजा जैसा भी हो उसको अच्छा बताना पड़ता है लेकिन जब आपको बनाना हो किसी को राजा तो परखना आज़माना पड़ता है मीठी मीठी बातों से बचकर सच को समझना होता है नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है। पति पत्नी का तालमेल नहीं ठीक तो घर परिवार की हालत खराब होती है मगर गलत व्यक्ति को शासन की बागडोर थमाई तो देश समाज का बंटाधार होना लाज़मी है। हर शासक को तमाम लोग अच्छा बताते हैं उसका गुणगान करते हैं अपनी खैर मनाते हैं झूठ को सच समझते हैं रोज़ ठोकर खाते हैं इतिहास कहता है इतिहास खुद को दोहराता है हर कोई अपने आप को मसीहा बतलाता है वास्तव में उल्लू बनाकर मौज मनाता है। बस अब मामला समझ आएगा कोई राजनीति का सबक समझेगा कोई रिश्तों की वास्तविकता समझायेगा। जिस तरह घर में नई नवेली दुल्हन जब आती है चार दिन में सबको समझती है फिर सबको नासमझ जानकर समझाती है नाज़ नखरे दिखाती है उसके बाद अपनी असलियत पर जब आती है। घर में सब गलत था ठीक करने का अधिकार जताती है आपको लगता है मौसमी बारिश है गीली मिट्टी की महक भाती है मगर कच्ची ज़मीन पर फिसलन कब किसके पांव डगमगाती है। 
 
सरचढ़ी बहु की तरह लोग चुनकर जिसको लाए थे उसके इरादे नहीं समझ पाए थे। आकर उसने सभी पर अपना जादू चलाया था मुझसे पहले नहीं कोई भी सच्चा अच्छा समझदार नहीं यहां आया था। सब बेकार था जो भी सभी ने मिलकर बनाया था उनको जीने का सलीका समझ नहीं आया था। उसको फूटी आंख नहीं कुछ भी भाया था मायके से नहीं मिला था कुछ भी सब यहां पाया था बस अपनी किस्मत पर राजनेता इतराया धुंवां बनकर छाया था। पुरखों ने विरासत जितनी छोड़ी थी बहुत थी मगर उसकी ज़रूरत के लिए थोड़ी थी। सब जमापूंजी उसके हाथ आई थी खज़ाने की चाबी मिल गई खूब लुटवाई थी रेवड़ियां सभी अपनों को बंटवाई थी खत्म करनी उसको घर की पाई पाई थी उसने किस्मत अपनी आज़माई थी पहाड़ था इधर उधर गहरी खाई थी। सब के सब बड़े हैरान थे परेशान थे अपनी भूल पर पशेमान थे। खत्म सभी के हो चुके अरमान थे कितने नासमझ थे कैसे नादान थे। अपने घर में बनकर रह गए अनचाहे महमान थे। उसने खोटा सिक्का जमकर चलाया था मुझे बदल नहीं सकते मुझे अपना शुभचिंतक समझना होगा ज़ुल्म को भी इनायत कहना होगा। आपकी भलाई है ज़हर भी दवाई है पीकर दुआ देना है दर्द ज़रूरी है दर्द सहकर आह नहीं भरना जीहज़ूर कहना है। 
 
पुरुष और महिला दोनों का स्वभाव अलग होता है पुरुष महिला को चिकनी चुपड़ी बातें कहकर प्यार से उपहार से खुश रखकर उसको रानी बोलकर खुद राजा बन शासक होने की आरज़ू करते हैं। महिला अपनी दिलकश अदाओं से पुरुष को अपना गुलाम बनाना जानती हैं। ये राज़ राज़ रहता है कि किसने किसको प्यार से अपना बनाया किसने चालाकी से भरोसा पाकर उंगलियों पर नचाया। मगर सत्ता का खेल कोई कुंवारा नहीं कभी जान पाया। जो शादी कर अपनी पत्नी को अकेली बेसहारा बीच मझधार छोड़ आया ऐसे व्यक्ति को हमने क्या समझा क्या बनाकर क्या पाया। इक उलझे हुए ने उलझन को इतना उलझाया कि उसकी गुत्थी कोई नहीं सुलझा पाया। जिसने बर्बाद करने को छोड़ नहीं कुछ भी कर दिखलाया उसका मंज़र पस-मंज़र जैसा नज़र आया।
 
   कितना बना हुआ सब मिटा डाला है अंधेरा कह रहा है वही उजाला है बाहर से सुंदर है बोलता है मीठी बातें दिल का मगर हद से बढ़कर काला है। कोई नशा सभी पर चढ़ाया है सेवक बनकर घर में आया था फ़र्ज़ इक दिन नहीं निभाया था ऐसा किरदार सामने आया है देख कर हर कोई घबराया है। किसी ने लिखा हुआ सब मिटाया है कालिख़ को स्वर्णाक्षर कहता है जिस शाख पर बैठा उसी को काट रहा है अधुनीक नव निर्माण की बात करता है। मत पूछो कैसी उसकी आदत है जाने किस तरह की उसकी हसरत है। सच से उसको नहीं उल्फत है झूठ फितरत है उसकी मुहब्बत है सियासत उसकी बड़ी कयामत है हर किसी की यहां शामत है। उसको सारे लोग खराब लगते हैं बस अच्छे खुद जनाब लगते हैं वो निराशा की फसल बोते हैं नफरत को बढ़ाकर हंसते हैं वही बाक़ी सब रोते हैं। अच्छे दिन झूठे सपने होते हैं झूठ सच कभी नहीं होते हैं। 

 

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