बदनाम बहुत हैं गुमनाम नहीं हैं ( लज्ज़त ए शोहरत ) डॉ लोक सेतिया
कोठों की बदनामी धंधा चमकाती है गब्बर सिंह का नाम मीलों तक दहशत महसूस करवाता था इस पर डाकू को नाज़ था अफ़सोस हुआ जब तीन साथियों ने नाम मिट्टी में मिला दिया। काली दाढ़ी वाले बाबा जी की खिल्ली जम कर उड़ाई जा रही है उनके चेहरे पर शिकन नहीं है उनका निशाना धंधे पर है धंधे में मुनाफा बढ़ता है तो खुद मज़ाक बन जाना खराब बात नहीं है। सफ़ेद दाढ़ी वाले से उन्होंने सीखा है खबरों में रहना ज़रूरी है भले विषय का क ख ग नहीं आता हो चर्चा में भाग लेना बड़े काम आता है। झूठ पकड़ा जाता है तब भी झूठ पर घंटा भर वाद विवाद चलता रहता है जिस में असली विषय किसी को याद ही नहीं रहता। अपमानित महसूस करना कारोबारी लोगों के लिए या राजनेताओं के लिए महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। जिस देश में सबसे बड़ी अदालत अपने को अपमानित करने वाले पर एक रुपया जुर्माना ठोकती है उस देश समाज में अपमानित सम्मानित होने पर चिंता करना फज़ूल है।
चलो झूठे काल्पनिक किस्से कहानियां पढ़ना छोड़ विचार करते हैं वास्तविकता क्या है। जिस इतिहास पर आपको गर्व है उसमें कितनी मिलावट कितनी बनावट है सोचने लगोगे तो पागल हो जाओगे। जिसको मसीहा लिखा हुआ है समझने लगे तो क़ातिल पाओगे अभी भी नहीं सच को सच कहोगे तो झूठ बोल कर झूठ सुनकर झूठे लोग कहलाओगे वक़्त के बाद जागोगे क्या होगा बस पछताओगे। कथा कहानी कभी सच नहीं होती है लिखने वाली कलम तक रोती है। आखिर में सब अच्छा होता है दर्शक अकल का कच्चा होता है लेकिन सबक यही सीखा है हमने बाद में जो होगा देखा जाएगा जीवन भर सबको लूटा खसूटा हैं हमने। स्वर्ग और नर्क जन्नत दोजख़ कितने जाकर कब देखा है जिनके हाथ कटे होते हैं उनकी भी भाग्य रेखा है। महल खड़े किये महनतकश लोगों ने खून पसीना उनका बहा था पैसा था भूखे नंगे गरीब लोगों का शिलालेख पर बादशाह का उल्लेख लिखा था। ज़ुल्मों की थी जो कहानी किसने लिखी कैसी थी मुहब्बत की दास्तां पुरानी और हमने समझा नहीं न जाना वहशत को चाहत जब माना। मेरी इल्तिजा सुनते हो प्यार करना सच्चा मगर ताजमहल न बनवाना हाथ पकड़ना साथ निभाना रिश्तों को मत जंजीर बनाना। शहंशाहों के ताज से अच्छा होता प्यार का छोटा सा आशियाना बसाना।
खुद को जो कहते हैं सेवक शासक बनकर सितम हैं करते उनके लाल कालीन के नीचे जाने कितने लोग कुचले पड़े हैं मगर ये बेरहम शान से चलते। गरीबों का हक छीन कर सब अरमान शासकों के पलते। धर्म की उपदेश की बातें दुनिया को समझाते हैं सबने देखा उनको खुद पाप की राह बढ़ते जाते हैं। छल कपट से बना इमारत उसको मंदिर मस्जिद कहते हैं क्या ऐसे घरों में ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु रहते हैं। हमने सच को नहीं है जाना झूठा पढ़ते हैं अफसाना तोते की तरह शब्द रटते हैं भावार्थ समझा न माना। देने वाला कोई नहीं है दाता बना सबसे बड़ा भिखारी नैतिकता क्या होती है और क्या होती है ईमानदारी ये सब भाषण की बातें हैं करते उल्टी बातें सारी जिसको बताते है दुनियादारी। शोहरत की चाहत जो हैं करते मुजरिम हैं गुनहगार हैं सारे कैसा युग आजकल है आया सबको डूबकर लोग ढूंढते हैं किनारे। बदनाम होकर भी खुश हैं झूठे लोग नाम मिला पहचान मिली है। मुझे कहा था मेरे बेटे ने सच है क्या आपने ये बात पढ़ी है।
इधर कब से कुछ लोग परिवारवाद की राजनीति से खानदानी कारोबार से मालामाल होने वालों को देश समाज का लुटेरा बता रहे थे अच्छे अच्छों की हस्ती मिटाकर धूल में मिलाने की कसम खा रहे थे। उनका कोई घरबार नहीं सबको समझा रहे थे अपना खाली झोला भरते भरते खुद सब देश समाज के लिए है मीठी मीठी बातों से उल्लू बना रहे थे। रात को दिन दिन को रात बनाकर जादूगिरी दिखला रहे थे। सोशल मीडिया टीवी अखबार सभी को कठपुतली बनाकर नचवा रहे थे सब उनके गुण गाकर अपना धंधा उनके गोरखधंधे से हाथ मिलाकर बढ़ा रहे थे। ऑफ दि रिकॉर्ड यार लोग समझा रहे थे हम खुद अपना नया इतिहास बना रहे थे। कोई आगे न पीछे बाद में सब भूल जाएंगे बस इसलिए उल्टी गंगा बहा कर कीर्तिमान बना रहे थे। कोई वारिस नहीं मगर विरासत बढ़कर शोहरत की बुलंदी पाकर इतरा रहे थे। बनाना नहीं कुछ भी जो भी पुराना बनाया हुआ है उसको ढा रहे हैं। हम जहां पांव रखते हैं उस धरती को बंजर बना कर कांटों की हस्ती दिखला रहे हैं। हम इंसान नहीं मशीन हैं बुलडोज़र की तरह बड़ी ऊंची इमारतों को ख़ाक में मिला रहे हैं। लोग टीवी पर देखते हैं हम मुस्कुरा रहे हैं जबकि हम खलनायक की तरह मन ही मन ठहाका लगा रहे हैं। जनता को क्या क्या सिखला रहे हैं बेचते हैं ज़मीर तक और आत्मा तक बिकवा रहे हैं। शोहरत जुर्म भी होती है जब अच्छे कार्य से नहीं खराब आचरण से भी पाने की ललक होती है हम सच करके दिखला रहे हैं। मतलबपरस्ती को देशभक्ति समाजसेवा घोषित करा रहे हैं।
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