ओटन लगे कपास ( शराफ़त की पढ़ाई नया नियम ) डॉ लोक सेतिया
मुझे मंज़ूर है संयम और शराफ़त से आचरण का नियम लागू होना लेकिन सबसे पहले उन पर यही सख़्ती से लागू किया जाये , जिनको खुद पर कोई नियम कानून कोई रुकावट कोई सीमा रेखा कोई मर्यादा का पालन करना अपने शासकीय अधिकार का हनन लगता है। सिर्फ सोशल मीडिया पर झूठ नफरत असभ्य भाषा बिना आधार किसी को बुरा भला कहना बंद करवाना लाज़मी नहीं सभ्य समाज में बड़े छोटे सभी को नैतिकता और सच्चाई का पास रखना ज़रूरी है। संक्षेप में मगर बिल्कुल साफ और तथ्यात्मक ढंग से विषय की बात करते हैं। सरकार कोई नेता जब कोई बात कोई वादा कोई आरोप किसी पर भाषण में खुली सभा में या फिर संसद विधानसभा में किसी अदालत में अपना पक्ष रखते हुए बोलकर लिख कर या किसी तरह से सामने लाता है तब उसकी कही गई समझाई गई हर बात को ऐसे नियम कानून की कसौटी पर खरा साबित होना ही चाहिए और ऐसा नहीं होने पर उस पर कठोर करवाई की जानी चाहिए। देश जनता समाज को झूठ से बहलाना झांसे में रख कर सही को गलत और गलत को सच समझाने का काम देशभक्ति नहीं अपराध है संविधान की भावना का अनादर है जो सत्ता पर बैठकर कभी नहीं किया जा सकता है। चुनाव में वादा किया जो वास्तव में सच नहीं साबित हुआ तब ये गुनाह माफ़ी लायक कदापि नहीं हो सकता है। ऐसे अपराध की सज़ा पांच साल बाद चुनाव में हार ही काफी नहीं बल्कि उनको इक पल भी शासन का अधिकार नहीं होना चाहिए। अपनी बात से पलटते ही उनका तख़्ता पलट किया जाना चाहिए।
सरकारी आंकड़े झूठे हों तो सरकार को रहने का अधिकार किसलिए और क्यों। कोई टीवी पर जनता को अपने किसी ढंग से निरोग होने का इश्तिहार देकर नाम पैसा शोहरत कमाता है लेकिन वास्तव में लोग उनकी कही बात मानने के बावजूद निरोग होते नहीं रोग बढ़ते जाते हैं तब सिर्फ वही इक शख्स नहीं उसके झूठ को जारी करने वाले सभी सहयोगी सहभागी टीवी अख़बार या उनके गोरखधंधे से फायदा उठाने वाले मुजरिम हैं लुटेरे हैं उन पर सज़ा और जुर्माना लगा कर जिनकी जेब से पैसा गया उनकी भरपाई की जानी चाहिए। सोशल मीडिया पर या टीवी अख़बार पर ज़हर को अमृत बनाना अपने कारोबार के बढ़ाने की खातिर उचित कैसे हो सकता है। सरकारी दफ़्तर में या पुलिस थाने या अदालत में डराने धमकाने रुतबा बढ़ाने को बिना कारण लोगों को अशिष्ट भाषा अनुचित अचार व्यवहार से अपनी मनमानी करना रिश्वत लेकर घर भरना क्या इसको किसी व्यक्ति अधिकारी शासक का विशेषाधिकार माना जाना चाहिए। किसी भी बहाने कोई भी मकसद बतलाकर आपराधिक आचरण को सही नहीं साबित कर सकते हैं।
व्हाट्सएप्प फेसबुक ट्विटर सोशल मीडिया पर गंदगी नहीं होना काफी नहीं है गंदगी कहीं भी नहीं रहनी चाहिए और शराफत सोशल मीडिया की नकली दुनिया से पहले हमारी वास्तविक दुनिया में होना अधिक ज़रूरी और महत्वपूर्ण है। वो कहानी याद है ना पापी को सज़ा देनी है मगर पहला पत्थर वो मारे जिसने खुद कोई पाप नहीं किया हो। कमाल का विधान है जिनके अपकर्मों की कोई गिनती नहीं कर सकता वो हमसे हिसाब मांगेगे अच्छे बुरे कर्म हर बोली बात हर लिखी बात को परखेंगे कसौटी पर। इंसाफ़ का तराज़ू पकड़ने वाले से कोई सवाल नहीं पूछेगा कि आपका ये तराज़ू सभी को बराबर समझता भी है या नहीं। लेकिन उनके बाट बदल जाते हैं लेने के अलग देने के अलग अलग हैं। मगर जिनका आगाज़ ही झूठा हो उसका अंजाम सच कैसे होगा आपको सोचने की नहीं समझने की ज़रूरत है। यहां नियम कायदे कानून बनते हैं कागज़ पर ज़मीन पर दिखाई नहीं देता कोई भी कायदा कानून , बाल मज़दूरी महिला सुरक्षा , शिक्षा और रोटी से लेकर जीने का बुनियादी अधिकार पहले से है लेकिन बंद कानूनी किताब में वास्तव में कहां है। इंसान तो क्या पशु पक्षी जानवर तक के लिए नियम कायदे कनून हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि गधों तक के लिए कानून बनाया हुआ है हर गधे से दिन में आठ घंटे काम लेना उसको दिन में चार बार भोजन पानी के लिए अवकाश मिलना उसके पांव पर रस्सी बांधने से पहले मुलायम कपड़ा बांधना कानूनी नियम है इतना ही नहीं उसको उमस भरे मौसम में काम नहीं करवाने की भी शर्त राखी हुई है।
कितने कानून बनाकर रख छोड़े हैं उनका पालन कोई नहीं करवाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात सभी ईमानदारी से कर्तव्य निभाने निष्पक्षता की न्याय की व्यवस्था की शपथ उठाकर कुर्सी पर बैठते हैं लेकिन अपनी शपथ कोई भी निभाता नहीं याद तक नहीं। आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास। जिस देश की संसद में बड़े बड़े गंभीर अपराध के आरोपी बैठकर कानून बनाते हैं कानून को समझते नहीं उसकी खिल्ली उड़ाते हैं उस देश में बदलने को कोई कानून कारगर नहीं साबित हो सकता कभी भी। आधुनिक व्यवस्था पर कुछ दोहे लिखे हैं आखिर में आपके लिए हाज़िर हैं।
देश की राजनीति पर वक़्त के दोहे - डॉ लोक सेतिया
नतमस्तक हो मांगता मालिक उस से भीखशासक बन कर दे रहा सेवक देखो सीख।
मचा हुआ है हर तरफ लोकतंत्र का शोर
कोतवाल करबद्ध है डांट रहा अब चोर।
तड़प रहे हैं देश के जिस से सारे लोग
लगा प्रशासन को यहाँ भ्रष्टाचारी रोग।
दुहराते इतिहास की वही पुरानी भूल
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल।
झूठ यहाँ अनमोल है सच का ना व्योपार
सोना बन बिकता यहाँ पीतल बीच बाज़ार।
नेता आज़माते अब गठबंधन का योग
देखो मंत्री बन गए कैसे कैसे लोग।
चमत्कार का आजकल अदभुत है आधार
देखी हांडी काठ की चढ़ती बारम्बार।
आगे कितना बढ़ गया अब देखो इन्सान
दो पैसे में बेचता यह अपना ईमान।
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