कुछ ठग इक बाज़ार सब ख़रीदार ( हाल-ए- बीमार ) डॉ लोक सेतिया
जल्दबाज़ी मत करना पढ़ना सोचना समझ आये तो समझना नहीं समझ सको तो उनसे कभी मत उलझना। ठग लोगों की बिरादरी है कोई चोर-चोर मौसेरे भाई नहीं हैं उनका अपना धंधा है गंदा है मगर मुनाफा चंगा है। किसी को धरती पर सिक्का जमाना था किसी को समंदर पर कब्ज़ा जमाना था। हाय अपना भी कोई ज़माना था दुनिया हमारी उनका नहीं कहीं भी आशियाना था। मांगने से चाहे छीनकर मिला बना लिया सभी ठगों ने कोई ठिकाना था धेला पैसा बनते बनते बन गया इक आना दो आना चार आना था अठन्नी की हसरत बाक़ी थी रूपये की हैसियत को पाना था। हमने उनको नहीं ठीक पहचाना था देशभक्ति समाजसेवा सब झूठा बहाना था उन्हें तो दुनिया को उल्टा सबक पढ़ाना था लिखना नहीं सीखा था जो लिखा उसको मिटाना था उल्लू बनाकर सबको दिखाना था। हमने भी क़व्वाली को सच कर दिखलाना था जो दवा के नाम पे ज़हर से उस चारागर को ढूंढ लाना था। अपने क़ातिल को मसीहा कहकर दिल को बहलाना था मगर उनकी नज़र थी उनका निशाना था।
हर साल की तरह उनको जश्न मनाना था मगर अफ़सोस मौसम क़ातिलाना नहीं हर तरफ छाया वीराना था नशा था चढ़ा बिना पिये हर कोई दीवाना था साकी नहीं था न कोई पैमाना था बसंती को गब्बर सिंह को मनाना था । नाचना नहीं चाहिए झूमना भी अच्छा नहीं लेकिन उनको दिल अपना लगाना था झूठी तक़रीर की आरज़ू थी सच को दफ़नाना था। सारी दुनिया पर उनको परचम लहराना था हम लोग अच्छे बुरे हैं सभी उनका कौमी तराना था गुलाम सबको मानसिक तौर से बनाकर आप से अच्छा कोई नहीं शोर मच गया शोर देखो आया कैसा ठग वाला दौर खुद हंसना सभी को रुलाना था महरमछ के आंसू बहाकर अंदर से मुस्कुराना था।
चूहों की दौड़ है बिल्ली मौसी का नहीं चलता ज़ोर है भौंकने वालों की नगरी में गधा बना सिरमौर है। डरने की क्या बात है जब गब्बर सिंह कहता मन की बात है तेरा मेरा साथ रहे जनता सदा उदास रहे चोरों की बरात चली सच की अर्थी साथ चली। टीवी पर ठग छाए हैं बड़े दूर की कौड़ी लाये हैं शीशे के महल बनाए हैं पत्थर जमकर चलवाएं हैं ये आधुनिक काल की बातें हैं बिन पानी की बरसातें हैं शीशे ये इतने पक्के हैं कोई इनको तोड़ नहीं सकता हवा का रुख उनके इशारे पर कोई आंधी को मोड़ नहीं सकता। टीवी पर बस दो चेहरे हैं शतरंज में ये दो मोहरे हैं बाकी सब बेजान खड़े खड़े मरते हैं बस ज़हर पीकर आह नहीं भरते हैं सुभानअल्लाह माशाल्लाह कहकर बादशाह सलामत रहे कहते रहते हैं। मसीहा है वही अत्याचारी है जाने कैसी बिमारी है जो दुनिया में सबसे झूठा है लाख सच पर वही भारी है। हम राजा-जानी हैं अभिनेता राजकुमार का अपना अंदाज़ था उसने अपनी शर्तों पर अभिनय कर खुद को सबसे अलग और बड़ा माना था क्या ज़माना था। उधर मीनाकुमारी का मंदिर और आखिरी सांस गिनती मां थी इधर शराब शराबी मयखाना था और क्या अजब तराना था।
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