जनवरी 06, 2013

POST : 274 सब के वादों का न एतबार करो (ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सब के वादों का न एतबार करो (ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सब के वादों का न एतबार करो
उनके आने का न इंतज़ार करो ।

कुछ नहीं मिलता यहां वफ़ा करके
तुम खता ऐसी न बार बार करो ।

उसने पूछा था बड़ी अदा से कभी
कह दिया हमने , हमें न प्यार करो ।

धड़कनों पर ही न इख्तियार रहे
इतना तो दिल को न बेकरार करो ।

भर के बाहों में उसे था चूम लिया
यूं तो ख़्वाबों को न गुनाहगार करो ।

बेवफा अहले जहां हुआ "तनहा"
तुम वफाएं अब न बार बार करो । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: