जनवरी 27, 2013

POST : 292 सच जो कहने लगा हूं मैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सच जो कहने लगा हूं मैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सच जो कहने लगा हूं मैं
सबको लगता बुरा हूं मैं ।

अब है जंज़ीर पैरों में
पर कभी खुद चला हूं मैं ।

बंद था घर का दरवाज़ा
जब कभी घर गया हूं मैं ।

अब सुनाओ मुझे लोरी
रात भर का जगा हूं मैं ।

अब नहीं लौटना मुझको
छोड़ कर सब चला हूं मैं ।

आप मत उससे मिलवाना
ज़िंदगी से डरा हूं मैं ।

सोच कर मैं ये हैरां हूं
कैसे "तनहा" जिया हूं मैं । 
 

 

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