जनवरी 24, 2013

दोस्ती इस तरह निभाते हैं ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

दोस्ती इस तरह निभाते हैं( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

दोस्ती इस तरह निभाते हैं
रूठ जाते कभी मनाते हैं ।

रोज़  घर पर हमें बुलाते हैं
दर से अपने कभी उठाते हैं ।

वो कहानी हुई पुरानी अब
इक नई दास्तां सुनाते हैं ।

रात आते नज़र सितारे भी
और जुगनू भी टिमटिमाते हैं ।

लोग मिलते नहीं कभी खुद से
आज तुम से तुम्हें मिलाते हैं ।

मंज़िलें पास पास लगती हैं
बोझ मिलकर अगर उठाते हैं ।

जब भी "तनहा" उदास होते हैं
दीप आशा के कुछ जलाते हैं । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: