दोस्ती इस तरह निभाते हैं( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
दोस्ती इस तरह निभाते हैंरूठ जाते कभी मनाते हैं।
रोज़ घर पर हमें बुलाते हैं
दर से अपने कभी उठाते हैं।
वो कहानी हुई पुरानी अब
इक नई दास्तां सुनाते हैं।
रात आते नज़र सितारे भी
और जुगनू भी टिमटिमाते हैं।
लोग मिलते नहीं कभी खुद से
आज तुम से तुम्हें मिलाते हैं।
मंज़िलें पास पास लगती हैं
बोझ मिलकर अगर उठाते हैं।
जब भी "तनहा" उदास होते हैं
दीप आशा के कुछ जलाते हैं।
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