दोस्त अपने हमें बुला न सके ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
दोस्त अपने हमें बुला न सकेहम भी गैरों के पास जा न सके ।
प्यार तो प्यार है इबादत है
पर सभी ये सबक पढ़ा न सके ।
जो कभी साथ साथ गाये थे
हम ख़ुशी के वो गीत गा न सके ।
आप करते गये सितम पे सितम
हम लबों तक भी बात ला न सके ।
कह रहा है हमें ज़माना भी
सीख जीने की तुम अदा न सके ।
मत कभी रूठ कर चले जाना
हम किसी को कभी मना न सके ।
तुम हमें दे गये कसम "तनहा"
अश्क हम चाह कर बहा न सके ।
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