अपराधी महिला जगत के ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
आपहां आप भी
शामिल हैं
महिलाओं के विरुद्ध
बढ़ रहे अपराधों में
किसी न किसी तरह ।
आप जो
अपने
कारोबार के लिये
प्रसाधनों के
प्रचार के लिये
प्रदर्शित करते है
औरत को
बना कर
उपभोग की एक वस्तु ।
आपकी
ये विकृत मानसिकता
जाने कितने और लोगों को
करती है प्रभावित
एक बीमार सोच से ।
जब भी ऐसे लोग करते हैं
व्यभिचार
किसी बेबस अबला से
होते हैं आप भी
उसके ज़िम्मेदार ।
आपके टी वी सीरियल
फ़िल्में आपकी
जब समझते हैं
औरतों के बदन को
मनोरंजन का माध्यम
पैसा बनाने
कामयाबी
हासिल करने के लिये
लेते हैं सहारा बेहूदगी का
क्योंकि नहीं होती
आपके पास
अच्छी कहानी
और रचनात्मक सोच
समझ बैठे हैं फिल्म बनाने
सीरियल बनाने को
सिर्फ मुनाफा कमाने का कारोबार ।
क्या परोस रहें हैं
अपने समाज को
नहीं आपको ज़रा भी सरोकार ।
आप हों अभिनेत्री
चाहे कोई माडल
कर रही हैं क्या आप भी
सोचा क्या कभी
थोड़ा सा धन कमाने को
आप अपने को दिखा रही हैं
अर्धनग्न
सभ्यता की सीमा को
पार करते हुए
आपको अपनी वेशभूषा
पसंद से
पहनने का पूरा हक है
मगर पर्दे पर
आप अकेली नहीं होती
आपके साथ सारी नारी जाति
का भी होता है सम्मान
जो बन सकता है अपमान
जब हर कोई देखता है
बुरी नज़र से
आपके नंगे बदन को
आपका धन या
अधिक धन
पाने का स्वार्थ
बन जाता है
नारी जगत के लिए शर्म ।
ऐसे दृश्य कर सकते हैं
लोगों की
मानसिकता को विकृत
समाज की
हर महिला के लिये ।
हद हो चुकी है
समाज के पतन की
चिंतन करें अब
कौन कौन है गुनहगार ।
2 टिप्पणियां:
So true sir but no one thinks about it
आज के समय मे प्रासङ्गिक कविता। बहुत लोग जिम्मेदार होते हैं वास्तव में
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