फूलों के जिसे पैगाम दिये ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया " तनहा "
फूलों के जिसे पैग़ाम दियेउसने हमें ज़हर के जाम दिये।
मेरे अपनों ने ज़ख़्म मुझे
हर सुबह दिए हर शाम दिये।
सूली पे चढ़ा कर खुद हमको
हम पर ही सभी इल्ज़ाम दिये।
कल तक था हमारा दोस्त वही
ग़म सब जिसने ईनाम दिये।
पागल समझा , दीवाना कहा
दुनिया ने यही कुछ नाम दिये।
हर दर्द दिया यारों ने हमें
कुछ ख़ास दिये , कुछ आम दिये।
हीरे थे कई , मोती थे कई
" तनहा " ने सभी बेदाम दिये।
सूली पे चढ़ा कर खुद हमको
हम पर ही सभी इल्ज़ाम दिये।
कल तक था हमारा दोस्त वही
ग़म सब जिसने ईनाम दिये।
पागल समझा , दीवाना कहा
दुनिया ने यही कुछ नाम दिये।
हर दर्द दिया यारों ने हमें
कुछ ख़ास दिये , कुछ आम दिये।
हीरे थे कई , मोती थे कई
" तनहा " ने सभी बेदाम दिये।
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