जनवरी 13, 2013

आज खारों की बात याद आई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आज खारों की बात याद आई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आज खारों की बात याद आई
जब बहारों की बात याद आई।

प्यास अपनी न बुझ सकी अभी तक
ये किनारों की बात याद आई।

आज जाने कहां वो खो गए हैं
जिन नज़ारों की बात याद आई।

साथ मिलके दुआ थे मांगते हम
उन मज़ारों की बात याद आई।

कुछ नहीं दर्द के सिवा मुहब्बत
ग़म के मारों की बात याद आई।

जब गुज़ारी थी जाग कर के रातें
चांद तारों की बात याद आई।

दूर रह कर भी पास पास होंगे
हमको यारों की बात याद आई।

आज देखा वतन का हाल "तनहा"
उनके नारों की बात याद आई। 

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