मई 23, 2024

POST : 1826 ज़ुल्मों का आपके हिसाब नहीं ( जान भी ले लो ) डॉ लोक सेतिया

  ज़ुल्मों का आपके हिसाब नहीं ( जान भी ले लो ) डॉ लोक सेतिया 

नहीं जनाब कोई कटाक्ष नहीं , कोई शिकायत करने का इस देश की जनता को हक ही नहीं है , दुःख है तो इस बात का है कि इतना शाही ठाठ-बाठ भरा जीवन पाकर भी आपकी हसरतें लगता है अधूरी हैं ।  शायद कभी कोई हिसाब गिनेगा कि आपने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए खुद अपने सुख सुविधा शानो-शौकत मौज मस्ती और कितनी ही आरज़ूएं पूरी करने पर देश के खज़ाने को कितना कैसे बर्बाद किया । ऐसा महसूस होता है कि गिनती की जाए तो आप पर हर दिन नहीं है घंटे नहीं हर मिंट शायद करोड़ों रूपये खर्च किया गया होगा , जितने से जाने देश के कितने बदहाल लोगों की ज़िंदगी संवंर सकती थी । आपकी बातें आपके इश्तिहार देख कर मन घबराता है कि दावा किया जाता है आपने कितनी मेहनत की देश की भलाई करने में खुद को अर्पित कर दिया , इक शायर का शेर याद आता है वो करम उंगलियों पे गिनते हैं ज़ुल्म का जिन के कोई हिसाब नहीं । सच है आपका कोई जवाब नहीं पर सच है कि आप घना अंधकार हैं , कोई आफ़ताब नहीं , इस गरीब देश की पीठ आपके बोझ से झुककर दुहरा हो चुकी  है , आपको लगता है लोग सलाम कर रहे हैं । पचास साल पहले दुष्यंत कुमार की किताब की ग़ज़ल कभी इस हद तक हक़ीक़त ब्यान करेगी नहीं सोचा था पेश करता हूं पूरी ग़ज़ल आज का सच साबित हो गई है ।
 
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा , 
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा ।
 
यहां तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियां , 
मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा ।
 
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते , 
वो सब के सब परीशां हैं वहां पर क्या हुआ होगा ।
 
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन सुन कर तो लगता है , 
कि इंसानों के जंगल में कोई हांका गया होगा । 
 
कई फ़ाक़े बिताकर मर गया , जो उस के बारे में , 
वो सब कहते हैं अब , ऐसा नहीं , ऐसा हुआ होगा ।  
 
यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं , 
ख़ुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा । 
 
चलो , अब यादगारों की अंधेरी कोठड़ी खोलें ,  
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा ।    
 
ये कमाल है कि आप बताते हैं कि आपका जन्म किसी मां की कोख़ से शायद नहीं हुआ लगता है ऊपरवाले ने मुझे किसी ख़ास मकसद से भेजा था इस देश में कुछ अलग विलक्षण करने को । पता नहीं भगवान जाने भगवान को ये बात सुनकर क्या लगा होगा । क्या मैंने इस मनुष्य को देश को इस तरह आर्थिक तौर पर लूटने बर्बाद करने को बनाकर धरती पर भेजा था , नहीं ये दोष उस पर मत डालो भले जितना भी उड़ा सकते हो उड़ा लो मौज मना लो । अपनी मां जो अब ज़िंदा नहीं उस पर थोड़ा तो तरस खा लो किस तरह पाला पोसा खिलाया पिलाया उस के दूध की लाज बचा लो । मईया मोरी मैं नहीं माखन खायो भजन सुना लो , तू कितनी भोली है गीत गा कर दिल बहला लो ।  आपने किसी को नहीं छोड़ा बदनाम करने में नफ़रत की आंधी चलाने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं छोड़ी , हर कसम संविधान की तोड़ी मरोड़ी कुछ इस तरह छोड़ी कि शर्म भी लगती है थोड़ी बड़ी थोड़ी । घर का मालिक जब खुद करता है माल की चोरी मैली चादर भी लगती है अभी है बिल्कुल कोरी की कोरी , कहते हैं लोग मत करो जोरा - जोरी रहने दो जो भी बची इज्ज़त थोड़ी ।

अलख - ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था आपको  धोखा हुआ होगा । - दुष्यंत कुमार #LabourDay | Facebook

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सब आंखें बंद किये हुई जप रहे हैं उसी को |

Sanjaytanha ने कहा…

Khud ke shauq poore kiye ja rhe hn...👍