मई 19, 2024

POST : 1823 कितने गब्बर सिंह आज भी - 2 ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया

  कितने गब्बर सिंह आज भी - 2  ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया 

किसी भी राजनैतिक दल के तथाकथित हाई कमांड या बड़े नेता अध्यक्ष सचिव इत्यादि को ये बात भूल कर भी नहीं सोचनी चाहिए कि आम लोग या जनता उनसे डर कर हाथ जोड़ती है उनका स्वागत करती है । ऐसा हमारे देश समाज का स्वभाव है सभी से प्रेम पूर्वक मिलना आदत होती है लेकिन जब कोई अनुचित ढंग से आचरण करता है या अहंकार प्रकट करता है तो अधिकांश लोग समझा भी देते हैं कि हमको उनकी ये बात पसंद नहीं है । लेकिन ये समस्या हर राजनीतिक दल में दिखाई देती है कि वहां दल में शामिल लोग कार्यकर्ता से सांसद विधायक पार्षद सरपंच आदि सभी अपनी खुद की बात भी खुलकर कहने का साहस नहीं करते हैं बल्कि अधिकतर गलत का भी विरोध नहीं समर्थन करते हैं किसी को खुश करने और नाराज़ करने से बचने की खातिर । ये विचित्र विसंगति है जिनको लोकतंत्र और विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का पक्ष लेना चाहिए वही खुद अपने लिए इसका महत्व नहीं समझते । ऐसा हमेशा से नहीं था और वामपंथी विचारधारा को छोड़कर अन्य सभी विचारधारा वाले दलों में तर्क और विचार विमर्श होना सामान्य बात थी । जिनको देश की आज़ादी का इतिहास पता है या संविधान बनाने की बहस चर्चा की जानकारी है अथवा शुरूआती दौर में संसदीय करवाई को लेकर समझा है उन्हें मालूम है कि जितना भी बहुमत सत्ताधरी दल को बेशक मिला हो विपक्ष की आवाज़ को सुना और समझा जाता था । अपने दल में भी विचारों का मतभेद कोई अचरज की बात नहीं समझी जाती थी । ये सब बेहद महत्वपूर्ण है हमारे लोकतंत्र को मज़बूत करने और परिपक्व करने के लिए । 

इधर आजकल दिखाई देता है की दलीय अनुशासन कायम रखने के नाम पर अपने ही दल के सदस्यों को किसी बंधक की तरह रहने को विवश किया जाता है । लेकिन जो ऐसा अपमानजनक व्यवहार सहन करते हैं उनको न अपने दल से न ही बड़े नेताओं से कोई सरोकार होता है उनको सिर्फ अवसर मिलते ही दल से कोई फायदा उठाने की इच्छा रहती है । साफ शब्दों में ऐसे लोग जिस भी दल में शामिल होते हैं किसी विचारधारा को लेकर नहीं बल्कि किसी नेता का सहारा पाकर अपना ज़मीर उसके पांव में रख कर जनता में कोई पहचान बनाने को करते हैं । ये कभी जनता की बात नहीं करते न जनता की समस्याओं की चिंता करते हैं बल्कि उनको किसी आका की भीड़ बनकर रहना स्वीकार होता है कभी कोई खैरात अथवा अनुकंपा हासिल करने की उम्मीद में कभी शायद जीवन भर तो कभी सुविधानुसार दलबदल कर इधर उधर भटकने की कोशिश किया करते हैं । जनता को ऐसे तथाकथित नेताओं से बचना चाहिए क्योंकि जो किसी गब्बर सिंह जैसे व्यक्ति की जीहज़ूरी करते हैं आपको भी अपमानित कर सकते हैं । चिंता की बात है कि हमने सच बोलना साहस से अपना पक्ष रखना छोड़ दिया है और हम इक ऐसे मतलबी समाज बनने को अग्रसर हैं जिस में स्वार्थ की खातिर नैतिकता आदर्श और ईमानदारी का त्याग कर चाटुकारिता को उचित समझ सकते हैं । 
 





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