इक आवारा बादल ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
कहीं किसी इक जगह कब ठहरता है कोई बादल आवारा , मैंने चांदनी रात को चांद से कह दिया था । मेरा कोई ऐतबार नहीं मेरा कभी इंतिज़ार मत करना । हवाओं का रुख समझ जिधर की हवा चली उधर उधर भटकता रहा किसी दरवेश की तरह सोचा समझा कुछ नहीं बस मनमौजी की तरह सभी को छोड़ अपनी ही धुन में अनजानी राहों पर सफर करता रहा । कोई ठौर ठिकाना नहीं किसी से दोस्ती याराना नहीं नाता कोई नया पुराना नहीं दुनिया क्या है खुद क्या पहचाना नहीं । ज़िंदगी का मज़ा लूटता रहा धीरे धीरे मेरा माज़ी पीछे छूटता रहा । कभी सोचा नहीं था मुकद्दर का सिकंदर होना चाहता हूं वो ख़्वाब हक़ीक़त बन जाएगा । किस्मत ने ज़ीरो से हीरो बना दिया तो समझने लगा मुझ जैसा दुनिया ज़माने में कोई नहीं बस फिर क्या था किसी भी देश के शासक ने जो नहीं किया मैंने सब किया और डंके की चोट किया । मेरा झूठ दुनिया को इतना अच्छा लगा कि मुझे ज़माने के झूठों का सरदार घोषित किया गया और मुझे अपने झूठ और सभी के सच से बड़े और शानदार लगने लगे । सच मैंने कभी बोला ही नहीं लेकिन सभी को मेरे झूठ पर इतना यकीन था कि खुद मैं भी बताता कि ये सच नहीं तब भी लोग नहीं मानते क्योंकि उन्होंने मुझे नायक नहीं मसीहा समझा और मैं भी अपने आप को भगवान मानने लग गया ।
शोहरत की बुलंदी का तमाशा ख़त्म हुआ तो खुद को ऊंचे पर्वत के शिखर से नीचे धरती पर पाया । सब कुछ ख़त्म हुआ तो लगा कि क्या हुआ जितना ऐशो आराम आन बान बिना कुछ किए हासिल हुआ बहुत था किसी किसी को ज़माने में मिलता है कथाओं कहानियों में जो मुझे वास्तव में झोली में मिल गया इत्तेफ़ाक़ से । बस समस्या इक ही है कि वापस पीछे लौटना संभव नहीं और आगे कोई मंज़िल नहीं पाने को , कुछ साथी बन गए हैं जो मतलब के यार हैं । उनको जितना बांटा है कोई हिसाब नहीं शायद मैंने जो बरस खैरात मांग मांग कर जीवन बिताया वो कुछ भी नहीं लेकिन खैरात कभी कोई वापस लौटाता है न कोई मांगता ही है । ज़िंदगी भर मैंने किसी से प्यार वफ़ा निभाई नहीं तो कोई मुझसे निभाएगा ऐसा सोचना ही व्यर्थ है । मैंने पिछले दस साल कुछ भी नहीं किया कर बहुत कुछ सकता था लेकिन जिस को बगैर कुछ काम किए बिना किसी समझ काबलियत को देखे दुनिया घोषित कर दे कि वो सब से बढ़कर है हर काम में , वो कुछ सीख भी नहीं सकता । कोई विकल्प नहीं था नौटंकी करने के सिवा कि मैं सब से बढ़कर सबसे अच्छा सबसे सच्चा हूं । मेरे अभिनय को सभी ने मेरा असली किरदार समझा है इसलिए अब मुझे कुछ नहीं करने की आदत बदलनी होगी और फ़िल्म टीवी पर अपना सिक्का जमाना होगा । इश्तिहार का युग है और विज्ञापन में काम करने वाले कितने मालामाल हुए हैं । कैमरा तो मेरी ज़रूरत ही नहीं कमज़ोरी भी है मुझे पल पल दुनिया को दिखाई देना पसंद है बस विज्ञापन जगत मेरा इंतिज़ार बेसब्री से कर रहा है । मैं इक ब्रांड कहलाता हूं और मेरा भाव सब से अधिक होना ही है । ये किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी नहीं है इक काल्पनिक कथा है कृपया इस को कुछ और नहीं समझना किसी से कोई ताल्लुक कदापि नहीं है इक कविता आखिर में ।
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