मई 19, 2024

POST : 1822 कितने गब्बर सिंह आज भी ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया

      कितने गब्बर सिंह आज भी ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया   

गब्बर सिंह आज भी ज़िंदा है एक नहीं कितने ही नाम से देश राज्य से नगर नगर तक और आज भी उसके नाम का डंका बजता है । लोकतंत्र है गब्बर सिंह जंगल गांव छोड़ कर महानगर में आकर बस गया है और साथ ही उस ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर खुद को मसीहा घोषित करने को अपना इक आईटी सेल बना लिया है । गब्बर सिंह आधुनिक डाकू अर्थात शासक बन गया है जनता को झूठे सपने दिखला कर चुनाव जीत गया है । बसंती अभी भी नादान है जय वीरू भी गब्बर सिंह के संगी साथी बनकर धन दौलत नाम शोहरत कमाने लगे हैं । उनको छोटी मोटी चोरी करने की ज़रूरत नहीं है गब्बर सिंह से गठबंधन कर सुःख चैन से मौज मस्ती करते हैं । उधर बसंती को इक और गब्बर सिंह अच्छा लगा तो उस से दोस्ती बना ली है हर गब्बर सिंह की अलग अलग शर्त होती है और जितने भी गब्बर सिंह हैं उन सभी को अपना गुणगान बड़ा अच्छा लगता है । आधुनिक गब्बर सिंह लूटने के कितने ही तरीके अपनाते हैं और अंधा बांटे रेवड़ी का तौर अपनाते हैं चोर सिपाही मिल बैठ मौज मनाते हैं खूब पकवान खाते हैं कितने परिधान बनवाते हैं किसी शीशमहल की शोभा बढ़ाते हैं । शीशे के घर में रहने वाले इक बात भूल जाते हैं कि अपने घर शीशे के हों तो पत्थर औरों पर नहीं चलाते हैं । 
 
इक बसंती इक गब्बर सिंह के शीशमहल चली आई , गब्बर सिंह नहीं मिलना चाहता था बसंती नहीं समझी सत्ता होती है हरजाई । गब्बर सिंह के घर पर उसके भरोसे के संगी ने बसंती की जमकर कर दी है पिटाई वफ़ा का बदला होता ही बेवफ़ाई । चोर चोर मौसेरे भाई लेकिन उनको समझ नहीं आई बसंती का किरदार क्या है किसी से कभी भी नहीं जो घबराई बसंती ने अपनी आवाज़ उठाई गब्बर सिंह की थी जो तन्हाई आहट पाकर खेलने लगी छुपा-छुपाई । राम दुहाई राम दुहाई जाने किधर से चीख दी सुनाई , आपकी पाप की जितनी कमाई सारी निकली लाख छुपाई आखिर हाल हुआ है ऐसा आगे कुंवा तो पीछे खाई । चालाकी कई बार की थी खुद जुर्म किया सज़ा किसी और को दिलवाई धीरे धीरे अपने छोड़ गए , हुई जहां भर में रुसवाई । जिस भी थाली की रोटी खाई छेद उसी में कर झूठी कसम उठाई । इक दिन बोला था इक नाई जिस के हाथ हो उस्तरा उस से कभी नहीं उलझना भाई , गब्बर को ये बात नहीं समझ आई शायद शामत उसकी आई । 
 
हमने सुनी थी इक कहानी सच कहती थी वो नानी , होती है जो समझदार जनानी ( महिला ) कोई उस से करता है  जब छेड़खानी उसको मज़ा चखाती है वो अकेली चलती नहीं बदमाशी मनमानी । गब्बर सिंह नहीं समझा छोटी सी बात जय वीरू का भी हो चाहे साथ बसंती से मत टकराना समझा देगी आपकी औकात । महिला को कमज़ोर समझना होती है बड़ी ही भूल , देखना कभी किसी देवी को होता है हाथ त्रिशूल । नारी  होती है बड़ी महान उसका मत करना अपमान वर्ना आफत में पड़ जाएगी जान नारीशक्ति को पहचान । सुन लो सभी के सभी गब्बर सिंह क्षमा मांग कर कर लो पश्चाताप छोड़ झूठी आन बान शान नहीं तो मिट जाएगा नाम ओ निशान ।
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

👍👌samyik lekh...