हर मोड़ पर लिखा था आगे नहीं है जाना ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हर मोड़ पर लिखा था आगे नहीं है जाना 
कोई कभी हिदायत ये आज तक न माना । 
मझधार में पहुंच कर सरकार कह रही है 
सब डूब जायें बेशक बस नाख़ुदा बचाना । 
( नाख़ुदा = नाविक , मल्लाह , मांझी , केवट , कर्णधार )
हम मांगते न सोना हम मांगते न चांदी 
रहने को झौंपड़ी बस दो वक़्त का हो खाना । 
फिर वो ग़ज़ल सुना दो जो दर्द को भुला दे 
खुशियां हमें मिलेंगी किस दिन ज़रा बताना । 
ये ज़िंदगी ने पूछा चलते तो जा रहे हो 
अब तो कहीं बना लो रहने को इक ठिकाना । 
मंज़िल भी दूर तुमको चलना भी है अकेले 
इक बात याद रखना मत राह भूल जाना । 
चढ़कर मचान पर अब क्या देखते हो  "तनहा" 
था कारवां उन्हीं से  उनको था साथ लाना । 

1 टिप्पणी:
👍👌....आज तक न माना...दो वक़्त.. खाना
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