मई 05, 2020

सोमरस से कोरोना का ईलाज ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  सोमरस से कोरोना का ईलाज ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

  जो काम पैसे से नहीं होता सिफारिश से नहीं होता शराब की इक बोतल से झटपट हो जाता है। ये राज़ हर कोई जानता है। आपके घर दामाद जीजा जी आएं उनको छपन्न भोग खुश नहीं कर सकते मगर उनकी पसंद की शराब पिलाओ तो उनकी ख़ुशी आसमान पर होती है। शराब पीने को लोग कितने फासले तय कर लेते हैं ये लॉक डाउन कोरोना उनको क्या रोक सकते हैं। जो पीते पिलाते थे सरकार उनको पीने का अधिकार दे रही है यही स्वर्णिम पल हैं जो कभी कभी मिलते हैं। मोक्ष मिलना आसान है इस युग में घर में बंद शराबी को शराब का वरदान मिलना बड़ी बात है।  

    देर से ही  सही कोई शोध करने की कोशिश की जा रही है। ये जो बुद्धीजीवी तरह के लोग हैं उनको ताली थाली दिया जलाना फूल बरसाना मज़ाक लग रहा था मगर शराब की दुकानें खोलना कोई बिना सोचे समझे उठाया कदम नहीं है। सब देश अपने ढंग से दवा वैक्सीन बनाते रहें हम जानते हैं शराब सब दुःख दर्द मिटाने को ही कारगर नहीं है उस में अल्कोहल होता है जो हाथ धोने के सेनिटाइज़र में भी काम आता है और जिसको पीना भी खतरनाक नहीं अमेरिका के ट्रम्प के नीम हकीम जैसे नुस्खे की तरह। ये जांच करने को ही शराब के ठेके खोलने का निर्णय लिया गया है और उस को और महंगा करना भी उचित है दवा की तरह काम आने वाली हर चीज़ महंगी होनी लाज़मी है। अगले कुछ महीने में सरकार यही आंकड़े देखती रहेगी कि जैसे शराबी लोग सोचते हैं शराब कीटाणु नाशक है और उनके भीतर से सब जीवाणु कीटाणु का अंत कर देती है। शराबी को शराब को छोड़ कोई और नहीं मार सकता है। निडर होकर शराबखाने की कतार में बारिश धूप हर मौसम में खड़े होने का दम खम और हौसला रखने के बाद कोरोना खुद उनसे अपनी जान बचाने को दूर रहता है या नहीं। और फिर भी कोरोना उनको अपना शिकार नहीं बना सकता पाया जाता है तो हमारी बल्ले बल्ले है। जो अमेरिका इंगलैंड नहीं कर सकता भारत देश बड़ी आसानी से कर सकता है शराब बनाना यहां गांव क्या वीरान जगह रहने वाले तक जानते हैं और मानते हैं उनकी घर की बनाई शराब की बात ही और है। शराब पीने से आदमी का हौंसला बढ़ जाता है और चिंता दूर हो जाती है इसलिए भी जब लोग कोरोना से घबराए हुए हैं शराब सहायक बन सकती है।

     कोरोना पर शराब का असर देखने क ये शोध सफल हुआ तो देश में शराब की नदियां भले नहीं बहाई जा सकती हैं मगर रसोई गैस और पानी की लाईन की तरह सप्लाई करने का काम किया जाना मुमकिन है। घर घर शराब को सोमरस नाम से उपलब्ध करवाया जा सकता है क्योंकि जिनको नहीं मालूम उनको बता देते हैं कि ऐसा न केवल आयुर्वेद में वर्णन है बल्कि 1978 तक या उस के भी कुछ समय बाद आयुर्वेदिक दवा की दुकानों पर ये बिकती रही है और वास्तव में इसका उपयोग दवा की तरह नहीं शराब की तरह किया जाता रहा है। दाम भी कम और जिस दिन ड्राई डे होता ठेके बंद तब भी आसानी से मिल जाती थी। तब मुझे ये बात मेरी क्लिनिक के सामने खुली इक दुकान से पता चली थी। आपने भी किसी जगह शराब की बोतल चढ़ाने की बात सुनी होगी। शराब को शराब की तरह पीना हर किसी को नहीं आता अन्यथा शराब खराब नहीं होती खराबी शराब पीने वाले में होती है जो मदहोश होने को नहीं होश खोने को पीते हैं। शराब का हल्का हल्का सुरूर काफी होता है होश में रहना मदहोशी भी। जब सोमरस का गलत उपयोग किया जाने लगा तब इसको बंद करवा दिया गया था।

   सबसे अच्छी बात है कि शायद एक धर्म को छोड़कर किसी भी धर्म में मदिरा पान की मनाही नहीं है। जिस धर्म में मना है उन को भी मरने के बाद शराब मिलने की चाहत रहती है क्योंकि उनको यही बताया जाता है। मेरा आशय किसी धर्म की बात पर कुछ भी कहना नहीं है बल्कि जान है तो जहान है ये सोचकर शायद जो हम जैसे नहीं पीते या पीना छोड़ चुके हैं वो भी इसका स्वाद चख सकते हैं। किसी ज़माने में परमिट मिला करते थे ताकि हर कोई निर्धारित सीमा में नशा सेवन कर सके वही व्यवस्था फिर से लागू करनी होगी या ये भी किया जा सकता है कि डॉक्टर की लिखी पर्ची से ही कौन सी और कितनी शराब पीनी है खरीद सकेंगे। डॉक्टर्स की मौज हो जाएगी उनको शराब बनाने वाली कंपनियां मुफ्त सैंपल देकर अपना धंधा बढ़ाने का काम करेंगी। दवा कंपनी वाले अभी भी यदा कड़ा डिनर मीटिंग में शराब परोसती हैं।  यहां इक समस्या खड़ी हो सकती है क्योंकि आयुर्वेद में सोमरस का वर्णन है इसलिए युर्वेदिक डॉक्टर इस पर अपना अधिकार समझ सकते हैं। मगर वास्तव में ये उपचार संभव है भी या नहीं इस को लेकर कोई आयुर्वेदाचार्य भी विश्वास पूर्वक नहीं कह सकते दावा करना तो बहुत दूर की बात है।

     ऐसे में ये उपाय आज़माने को किसी चिकत्सक ने नहीं बल्कि जब सभी भविष्यफल बताने वाले कोई भविष्वाणी नहीं कर सके तब किसी लाल किताब वाले ने कोशिश करने को ये गोपनीय संदेश भेजा होगा  कुछ ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है । क्योंकि लाल किताब वालों के जितने भी उपाय होते हैं उनको बिना किसी की जानकारी करना ही सफलता की शर्त होता है। लाल किताब वाले बताया करते हैं कि कोई उपाय किस दिन किस समय और किस ढंग से किया जाना चाहिए। कभी बहते पानी में शराब की उनकी बताई संख्या की बोतलें उंडेलनी होती हैं कभी किस वीरान में ज़मीन में दबानी और कभी जो बहुत दिन से प्यासा हो उसकी प्यास बुझाना भी उपाय होता है। शायद चालीस दिन की प्यास की भी कोई शर्त रही हो सकती है। पता चला है कि लाल किताब वाले उनको जो शराब का सेवन नहीं करते हैं घर की अलमारी में इक बोतल रखने का उपाय बताया करते हैं।

( ये सच है या अनुमान कोई नहीं जानता। मगर इक चेतावनी आपको अवश्य देनी है कि ये इक काल्पनिक रचना शुद्ध मनोरंजन के लिए है अंधविश्वास को बढ़ावा देने को नहीं , क्योंकि जैसा सुनते हैं बताया जाता है कि अगर किसी के पास सही में कोई लाल किताब होगी तब आपको खुद उसके पास जाकर अपना परिचय देने की ज़रूरत नहीं होगी क्योंकि विश्वास है कि उसको अपनी किताब से पहले से जानकारी होगी किस ने कब क्यों आना है। असली नकली की पहचान इस से भी हो जाएगी कि न तो वो कोई पैसे लेगा और आपको खुद कुछ भी लिख कर देगा बल्कि आपको अपने पेन से अपने हाथ से कागज़ पर लिखवाएगा जो जो भी उपाय करना है। और क्योंकि ऐसा कोई नहीं मिलेगा इसलिए जब कोई आपको लाल किताब होने की बात कहे तो इस को आज़मा कर देख सकते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे नकली लोग मिलते हैं सावधान। )


 
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3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सोमरस रस नहीं इसका नाम तो 'शोकरस' होना चाहिए।
पीने वालों के लाख बहाने, शराब क्या-क्या रंग दिखाती है यह किसी से छिपा नहीं फिर भी पीने वाले हैं कि मानते ही नहीं
विचारशील प्रस्तुति

रमेशराज तेवरीकार ने कहा…

तीखी व्यंजना से सिक्त तमाचेदार व्यंग्य। हार्दिक बधाई डॉ साहब

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है sir... सामयिक👌👍