मई 10, 2020

POST : 1290 नसीब में जो नहीं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

        नसीब में जो नहीं ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

नहीं मिला बस कोई इक शख़्स 
जो चाहता समझना मुझे भी । 

खुशनसीब होते हैं दुनिया में वो 
जिनकी बात अच्छी लगती है ।  

मेरे नसीब में नहीं रहा कोई भी 
सुनता समझता कोई बात मेरी । 

खुद कहना भी अपनी बात को 
खुद समझना भी अपनी बात । 

बदनसीबी नहीं तो क्या है भला 
बस यही चाहा यही नहीं मिला । 

इक सन्नाटा कोई आवाज़ नहीं 
जाने ये कैसी है ज़िंदगी मेरी । 

इतनी लंबी ख़ामोशी जैसे कोई 
सदियों से भटकता रहे वीराने में । 

न कोई आहट न कोई चाहत ही 
इक मकसद बेमकसद सा है जैसे । 

सबका नसीब अपने जैसा न हो 
कुछ नहीं लिखा इस किताब में । 
 

 




1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत खूब👌👍