मई 28, 2020

POST : 1314 अब लगे टूटने सब भरम आपके ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब लगे टूटने सब भरम आपके ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

अब लगे टूटने सब भरम आपके 
क्या करम आपके क्या थे ग़म आपके । 

वक़्त ने आपकी पोल सब खोल दी 
कितने झूठे थे सारे वहम आपके । 

अब मसीहा नहीं मानते लोग भी 
काम आये नहीं पेचो-खम आपके । 

सोचना एक दिन ओ अमीरे-शहर 
लोग सहते रहे क्यों अलम आपके । 

कब निभाई किसी से वफ़ा आपने 
आप किसके हुए कौन हम आपके । 

ज़हर देते रहे सबको कहकर दवा 
ख़त्म होंगे कभी क्या सितम आपके । 

खून की बारिशें जिसमें "तनहा" हुईं 
लोग देखा करेंगे हरम आपके । 
 

 

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