यही ज़िंदगी का चलन अब बना दो ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
यही ज़िंदगी का चलन अब बना दो
पकड़ हाथ में हाथ नाता निभा दो ।
नहीं अजनबी लोग हैं सारे अपने
सभी से सभी का तआरुफ़ करा दो ।
कहो अब सभी से डरो मत किसी से
हरा मौत को ज़िंदगी को जिता दो ।
लड़ेंगे सभी मिल के हर इक लड़ाई
बदल वक़्त की चाल को भी दिखा दो ।
नई मंज़िलें , रास्ते भी नये हैं
हैं पत्थर जो राहों में सारे हटा दो ।
निशां तक ख़िज़ा का मिटा दो चमन से
न मुरझाएं जो फूल ऐसे खिला दो ।
ख़ुशी दर्द "तनहा" सभी मिल के बांटें
सलीका ये सीखो सभी को सिखा दो ।
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