शोहरत का सर्वोच्च कीर्तिमान ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
हर वर्ष वो इक घोषित किया करते हैं सब से अधिक नाम शोहरत किस की है। अभी तो इस वर्ष के चार मास ही बीते हैं मगर पिछले दो महीने में दुनिया में उसी एक नाम का डंका बज रहा है। पिछले सौ साल ही नहीं जब से दुनिया बनी है किसी अन्य का क्या ऊपर वाले का नाम भी दो महीने में इतनी संख्या में नहीं उच्चारित किया गया जितना इस एक नाम ने अपना शोहरत का सर्वोच्च कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। विश्व के सभी लोग चाहे ऊपर वाले को अपने अपने अलग नाम से जानते पहचानते हैं इसको एक ही नाम से जानकर हर घड़ी सोते जागते वही नाम ज़ुबान पर रखते हैं। जो नीचे धरती पर पांव नहीं रखते थे और जिनको आकाश भी अपने कद से छोटा लगता था और जो आकाश की ऊंचाई से भी ऊपर उड़ान भरते थे उन सबकी औकात ऐसी हो गई जैसे किसी बड़े ऊंचे पर्वत पर खड़े होकर किसी को ज़मीन पर चलते फिरते लोग कीड़े मकोड़े की तरह रेंगते लगते हैं। सरकार बेशक दूरदर्शन पर रामायण महाभारत से लेकर तमाम पुराने सीरियल अपनी बंद पेटी से निकालकर परोस ये उम्मीद करे कि लोग राम कृष्ण जपने लग जाएंगे ऐसा हुआ नहीं है हर पल हर जुबां पर उसी का नाम दिल में उसी का भय और मन में उसी को समझने जानने की इच्छा है। विश्व भर में लोकमत को आधार समझा जाए तो सभी देशों में वास्तविक शासन उसी का है। सबने स्वीकार कर लिया है उस से अधिक खतरनाक ताकतवर दूसरा कोई नहीं और सभी को मिलकर उसी को हराना है। अब तो नायक महनायक सदी के नायक से राजनीति खेल कलाजगत के भगवान कहलाने वाले सभी उसी की बात करने लगे हैं। फोल्लोवेर्स की संख्या अब कोई महत्व नहीं रखती है चाहने वाले कितने हैं ये मापदंड आजकल पुराना हो गया है दुश्मन और बुराई करने वाले असली पहचान है किसी की शोहरत की। जो लोग समझदार हैं समझ गए हैं जिनको नहीं समझना उनको समझाना व्यर्थ है।
आप सब कैदी हैं अर्थात गुनहगार होना साबित है। अब ये सोचकर कि आपको किस रंग की पोशाक मिली है हरी संतरिया या सुर्ख लाल खुश या उदास होने की बात नहीं है। पिंजरा सोने का चांदी का या लोहे का हो होता पिंजरा ही है और यहां सरकार की मर्ज़ी है आपको जब चाहे बदले रंग का आदेश जारी कर दे। आपको प्याज़ चुराने की सज़ा मिलनी है पहले आप सौ प्याज़ खाने को आसान समझोगे फिर सौ कोड़े खाने को राज़ी हो जाओगे और आखिर में सौ रूपये जुर्माना भी भरने को मानकर तीनों सज़ा भुगतनी हैं। जिसकी महिमा का गुणगान हो रहा है असली शासक वही है और किसी का उस पर कोई बस नहीं चल रहा है। उसकी मर्ज़ी है जिसे चाहे छोड़ दे जिसे चाहे जकड़ ले।
क्या ज़माना है कितना बदल गया सब कुछ कभी भगवान को खोजते थे वन पर्वत समाधि लगाकर माला जपकर। अब शोध हो रहा वो कौन है क्या है और उसका सामना कैसे किया जा सकता है। अघोषित ढंग से उसका आधिपत्य सबने स्वीकार कर लिया है क्योंकि उसका कोई अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा किसी को नज़र तक नहीं आया है किधर से कहां चला किस किस देश पहुंच गया है। ये कलयुग है तो कलयुग में कोई ऐसा ही सब का विनाश करने वाला ही खुद को मालिक घोषित कर सकता है। जो बच गए हैं हाथ जोड़कर उसका आभार जता सकते हैं शायद उसे किसी पर कभी दया आ ही जाए। उसकी कथा अभी शुरू हुई है और कितनी लंबी है कब तक चलेगी किसी को नहीं खबर। खबर वाले भी बेखबर हैं जो अपनी शोहरत को लेकर घोषित करते हैं कितने करोड़ दर्शक उनके चैनल को देख रहे थे ये नहीं जानते किसी के सामने उनकी औकात इक तिनके से भी कम है। कोई समंदर से विशाल बनकर खड़ा है आकाश से ऊंचाई पाकर और ये सभी टीवी चैनल राजनेता अभिनेता खिलाड़ी बाबा लोग धर्म उपदेशक इक बूंद भी नहीं किसी हवा के बुलबुले की तरह हैं जिसका क्षण भर का जीवन है। समझ लो और अब छोड़ दो ये झूठे दावे और अहंकार की बातें।
आप सब कैदी हैं अर्थात गुनहगार होना साबित है। अब ये सोचकर कि आपको किस रंग की पोशाक मिली है हरी संतरिया या सुर्ख लाल खुश या उदास होने की बात नहीं है। पिंजरा सोने का चांदी का या लोहे का हो होता पिंजरा ही है और यहां सरकार की मर्ज़ी है आपको जब चाहे बदले रंग का आदेश जारी कर दे। आपको प्याज़ चुराने की सज़ा मिलनी है पहले आप सौ प्याज़ खाने को आसान समझोगे फिर सौ कोड़े खाने को राज़ी हो जाओगे और आखिर में सौ रूपये जुर्माना भी भरने को मानकर तीनों सज़ा भुगतनी हैं। जिसकी महिमा का गुणगान हो रहा है असली शासक वही है और किसी का उस पर कोई बस नहीं चल रहा है। उसकी मर्ज़ी है जिसे चाहे छोड़ दे जिसे चाहे जकड़ ले।
क्या ज़माना है कितना बदल गया सब कुछ कभी भगवान को खोजते थे वन पर्वत समाधि लगाकर माला जपकर। अब शोध हो रहा वो कौन है क्या है और उसका सामना कैसे किया जा सकता है। अघोषित ढंग से उसका आधिपत्य सबने स्वीकार कर लिया है क्योंकि उसका कोई अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा किसी को नज़र तक नहीं आया है किधर से कहां चला किस किस देश पहुंच गया है। ये कलयुग है तो कलयुग में कोई ऐसा ही सब का विनाश करने वाला ही खुद को मालिक घोषित कर सकता है। जो बच गए हैं हाथ जोड़कर उसका आभार जता सकते हैं शायद उसे किसी पर कभी दया आ ही जाए। उसकी कथा अभी शुरू हुई है और कितनी लंबी है कब तक चलेगी किसी को नहीं खबर। खबर वाले भी बेखबर हैं जो अपनी शोहरत को लेकर घोषित करते हैं कितने करोड़ दर्शक उनके चैनल को देख रहे थे ये नहीं जानते किसी के सामने उनकी औकात इक तिनके से भी कम है। कोई समंदर से विशाल बनकर खड़ा है आकाश से ऊंचाई पाकर और ये सभी टीवी चैनल राजनेता अभिनेता खिलाड़ी बाबा लोग धर्म उपदेशक इक बूंद भी नहीं किसी हवा के बुलबुले की तरह हैं जिसका क्षण भर का जीवन है। समझ लो और अब छोड़ दो ये झूठे दावे और अहंकार की बातें।
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