मई 02, 2020

ऐसी दुनिया में इस तरह जीना ( लंबी ख़ामोशी ) डॉ लोक सेतिया

 ऐसी दुनिया में इस तरह जीना ( लंबी ख़ामोशी ) डॉ लोक सेतिया 

 कोई लौटा दे वही पुराने दिन। आपने यही तो मांगा था जो चाहा वही मिला है फिर परेशान क्यों हो। नहीं याद आया कितने संदेश पुराने समय की यादें वो खेल खिलोने गांव घर सब कुछ , वापस लौटना है छोड़ आधुनिक साज़ो-सामान जो वास्तव में जीने का नहीं था मौत का सामान इकट्ठा करते रहे। दो गीत सुन लो पुराने फिर आसानी से बात समझ  आएगी। 

ये महलों ये तख्तों ये ताज़ों की दुनिया येइंसां के दुश्मन समाजों की दुनिया ,
ये दौलत के भूखे रवाज़ों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है। 

हर इक जिस्म घायल हर इक रूह प्यासी निगाहों में उलझन दिलों में उदासी ,
ये दुनिया है या आलम ए बदहवासी ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है। 

यहां इक खिलौना है इंसां की हस्ती ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती ,
यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।

जवानी भटकती है बदकार  बनकर जवां जिस्म सजते हैं बाज़ार बनकर ,
यहां प्यार होता है व्यौपार बनकर ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।

ये दुनिया जहां आदमी कुछ नहीं है वफ़ा कुछ नहीं वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है ,
जहां प्यार की कदर ही कुछ नहीं है ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।

जला दो जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया ,
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।

गुरुदत्त की फिल्म प्यासा का ये गीत है उस फिल्म का इक और भी गीत है जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं। ये भारत के इतिहास का पहला गीत था जिस पर पाबंदी लगाई गई थी क्योंकि हुक्मरानों को कभी भी समाज का सच सुनाई दे इसकी इजाज़त नहीं देते हैं।

अब दूसरा गीत या नज़्म ग़ज़ल मीना कुमारी की शायरी से है।

चांद तन्हा है आस्मां तन्हा , दिल मिला है कहां कहां तन्हा।

बुझ गई आस छुप गया तारा , थरथराता रहा धुंआ तन्हा।

ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं ,  जिस्म तन्हा है और जां तन्हा।

हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं , दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा।

जलती बुझती सी रौशनी की तरह , सिमटा-सिमटा सा इक मकां तन्हा।

राह देखा करेगा सदियों तक , छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा।

जो आगे कहना है उस से पहले ये गीत सुनकर आपको शायद कुछ सुकून सा मिला हो थोड़ा चैन ज़रा करार दिल को मिल जाए ये सोचकर कि ऐसा आज नहीं पहले भी लोग अनुभव करते रहे हैं। जानता हूं लोग लंबी लंबी पोस्ट पढ़कर बोर हो जाते हैं दिन भर गप शप की छोड़ो सोशल मीडिया की बकवास से जी नहीं भरता है। कोशिश करता हूं संक्षिप्त इशारे में बात की जाए।

आपको डरा नहीं रहा सच है कि कोरोना नहीं भी रहेगा तब भी कोई और कारण दिखाई देगा और हम घर में खुद ही बंद कैदी की तरह रहना सीख लेंगे। जान है तो जहान है मगर जान कैसी और जहान कौन सा। मगर घबराओ नहीं सरकार नहीं तो कोई अवसरवादी आपको पहनने को ऐसी पोशाक जो आपको सर से पांव तक ढके रखती हो और किसी धातु के कवच और हाथ पांव पर कोई हथियार जैसे तीखे नाख़ून भी जान की सुरक्षा को ऊंची कीमत पर बनाकर बेचेगा। शिवजी जब अपने दुश्मन अफ़ज़ल खान से मिलने अकेले जाने लगे तब उनके अंगरक्षक रुस्तम ए जमाल ने उनको बाघ नख नाम का हथियार अपनी हाथ की उंगलियों में अंगूठियों के नीचे छुपाकर ले जाने का सुझाव दिया था। आने वाले समय में आपको भारी भरकम लिबास और शरीर को ढकने को बुर्के की तरह मुंह पर कोई मास्क कब तक कोई बड़ा सा घूंघट और पुरुष के लिए जैसा आपने देखा होगा जंग में जाते महराजाओं को भारी हेलमेट से मज़बूत कोई मुकट जैसा कुछ। कोरोना की दवा खोज भी ली और जाने उस से भयानक कोई और सामने खड़ा हो।

अपने कभी इंसान को छोड़कर किसी जीव जंतु को पक्षी को जानवर को कीड़े मकौड़े को मरने से डरकर खुद को बंद करते देखा है। कोई शिकारी कोई मुसीबत सामने आती है तब भी अपना हौंसला नहीं छोड़ते और जीने मरने को जब तक संभव है कोशिश करते हैं। हमने क्या समझा है या तो कुछ खाने की चाह है फिर भी खाते नहीं कोई रोग नहीं लग जाए या फिर जानते हैं ये खाना रोगी बना सकता है फिर भी खाते हैं खिलाते हैं। तंदुरस्त रहने को सही ढंग नहीं समझते और जिम से बदन को सही करने या किसी टॉनिक से शक्ति और सुरक्षा पाने की बात करते हैं। हमने खुद ही जीने को इक आफत बना लिया है।

अब सबसे हैरानी की बात जिसने खुद अपनी दुनिया को जीने के काबिल ही नहीं छोड़ा है। कोई भी पक्षी कोई जानवर अपनी ही जाति से डरता नहीं है अकेला पक्षी भी अपने को असहाय नहीं समझता और जब झुंड में साथ होते हैं तब भी कोई टकराव नहीं होता है। हम इंसान इंसान को अकेले देख कर अवसर मिलते ही अपनी सीमा पार कर मनमानी करने लगते हैं। आदमी का आदमी से बड़ा और ख़तरनाक दुश्मन कोई नहीं है। जीने का सामान जितना बनाया उस से बढ़कर मौत का सामान हमने बनाया है। इतना गोला बारूद और हथियार और विनाश का सामान बना रखा है जिस से इस दुनिया को एक नहीं सौ बार मिटाया जा सकता है। हम अपनी ताकत बढ़ाने दिखाने में इतने पागल हो गए हैं कि हमने पैसे और अहंकार की खातिर हवा पानी हर उपयोग की वस्तु को ज़हरीला बना दिया है। सच समझो तो हम जीते कब हैं मौत के साये में सांस लेने को जीवन समझने लगे हैं। मर तो हम जाने कब के कितनी बार चुके हैं। अब न तो हमने अपनी दुनिया को जीने लायक छोड़ा है और हम जीते भी हैं ज़िंदगी को जीने की तरह। हमारी ज़िंदगी बेमकसद बनकर रह गई और मरना नहीं चाहते मगर मौत को हर घड़ी और करीब लाते हैं।

   कोरोना से दो सबक सीखने को मिले हैं उनको भूलना नहीं है। 

1 पहला सबक :-

मंदिर मस्जिद पूजा पाठ उपदेश का कोई महत्व नहीं है। वास्तविक धर्म मानवता है हर किसी की सहायता करना सब को पेट भर भोजन और भेदभाव छोड़ जो भी जिसे परेशानी उसका समाधान करने में मदद करना। 

2 दूसरा सबक :-

हमने अपनी दुनिया को जितना खराब किया हुआ था और जो अपने आप सही हो गई केवल हमारे बैठने से क्योंकि कोई और हवा पानी आकाश धरती को बर्बाद नहीं करता रहा भविष्य में उसको अच्छा बनाए रखें।

                          इक शेर है किसी शायर का आखिर में।


             जीने का अगर अंदाज़ आये तो बड़ी हसीं है ये ज़िंदगी ,

             मरने के लिए जीना हो अगर तो कुछ भी नहीं है ये ज़िंदगी। 


 



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