दिसंबर 28, 2012

हमको जीने के सब अधिकार दे दो ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        हमको जीने के सब अधिकार दे दो ( ग़ज़ल ) 

                         डॉ लोक सेतिया "तनहा"

हमको जीने के सब अधिकार दे दो
मरने की फिर सज़ा सौ बार दे दो ।

अब तक सारे ज़माने ने रुलाया
तुम हंसने के लिए दिन चार दे दो ।

पल भर जो दूर हमसे रह न पाता
पहले-सा आज इक दिलदार दे दो ।

बुझ जाये प्यास सारी आज अपनी
छलका कर जाम बस इक बार दे दो ।

पर्दों में छिप रहे हो किसलिये तुम
आकर खुद सामने दीदार दे दो ।

दुनिया ने दूर हमको कर दिया था
रहना फिर साथ है इकरार दे दो ।

दिल देने आज "तनहा" आ गया है
ले लो दिल और दिल उपहार दे दो । 
 

 

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