अगस्त 25, 2025

POST : 2002 तकदीर से कुछ मिला नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया ( बाईस वर्ष पुरानी लिखी ग़ज़ल 2003 की डायरी से )

       तकदीर से कुछ मिला नहीं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया  

                     (  बाईस वर्ष पुरानी लिखी ग़ज़ल 2003 की डायरी से )  

तक़दीर से कुछ मिला नहीं 
दुनिया से शिकवा गिला नहीं । 
 
इक शाख़ से फूल टूटकर 
मुरझा गया फिर ख़िला नहीं ।  
 
वो ज़ख़्म दिल के करीब है 
जो चारागर से सिला नहीं । 
 
इस शहर का नाम दर्द है 
हमदर्द कोई मिला नहीं ।  
 
मंज़िल नहीं हमसफ़र नहीं 
आता नज़र काफ़िला नहीं । 
 
तूफ़ान आ कर गुज़र गए 
वो पेड़ उनसे हिला नहीं । 
 
' तनहा ' अकेले खड़े हुए 
बाक़ी रहा सिलसिला नहीं ।  
 

 


 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल सर👍