कितनी ज़मीन ज़रूरी है इंसान के लिए ? ?
( 15 साल पुरानी रचना 2025 तक हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया
अपनी इक पुरानी अलमारी से ढूंढने पर फाइल में मिल गई है दिन महीना साल नहीं लेकिन पढ़ते ही समझ आता है कि तब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे । जो तब लिखा हुआ टाइप किया हुआ है पहले उसी को दोहराता हूं । लिखा हुआ है ' करीब नौ दस साल पुरानी बात है '।
अमेरिका में रहने वाले रौशन आहूजा ने तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को एक खुला पत्र लिख कर सवाल पूछा था कि वो खुद अपने आपको क्या समझे , देशभक्त या पागल । वाजपेयी जी ने तब उसका क्या जवाब दिया था मुझे मालूम नहीं । शायद जवाब देना ही ज़रूरी नहीं समझा गया हो । लेकिन मेरा मानना है कि देशभक्त और पागल में कुछ ख़ास फ़र्क नहीं होता है । अच्छा है कि अभी भी देश के लिए सर्वस्व अर्पित करने वाले कुछ पागल बचे हुए हैं वर्ना कई बार लगता है कि अब देश के लिए समर्पण और कुर्बानी देने वाले लोगों की प्रजाति का अंत हो चुका है और देश को बर्बाद करने लूटने वाले खुद को देशप्रेमी घोषित करने लगे हैं । रौशन आहूजा ने वह पत्र क्यों लिखा था बताना ज़रूरी है ।
वे डेढ़ करोड़ की विदेशी मुद्रा साथ ले कर भारत आये थे ताकि यहां अपनी बेटी के नाम पर पुस्तकालय बना सकें । रौशन आहूजा ने विदेश में अपने सामने किसी को भारत की निंदा नहीं करने दी और इस आदत के चलते अपने कितने मित्र खो दिये । आज भी सरकार प्रशासन के लोग उनके दर्द को समझ नहीं सकते कि कैसे उन्होंने अपनी व्यथा लिख कर प्रधानमंत्री को भेजी होगी । जिस प्रधानमंत्री कार्यालय ने उस आईएस अधिकारी के भेजे गोपनीय पत्र को भ्र्ष्टाचारी लोगों तक पहुंचा दिया था जिन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग योजना में होने वाले भ्र्ष्टाचार की जानकारी दी थी जिस से सत्येंद्र दुबे को भ्र्ष्ट लोग क़त्ल कर देते हैं उनका तौर बदला नहीं अभी तक भी । अब तो यहां देश को लूट कर बर्बाद कर सबसे बड़े देशभक्त होने का परचम फहराते हैं ' यह मेरा इंडिया आई लव माई इंडिया ' गीत गाकर रंगारंग कार्यक्रम मनोरंजन के लिए आयोजित कर जश्न मनाते हैं मिल बांट कर खाते मौज उड़ाते हैं । देशभक्ति आजकल भावना नहीं दिखावा बनकर रह गई है । शासक प्रशासक जनता पर अन्याय अत्याचार करते हुई अपनी अंतरात्मा में नहीं झांकते हैं ।
रौशन आहूजा सरकारी विभाग से प्रशासनिक अधिकारियों से मिले और उनको पुस्तकालय बनाने की अपनी योजना बताई तो उनको हैरानी हुई । सरकारी विभाग उनको सार्वजनिक पुस्तकालय बनाने को ज़मीन इस शर्त पर देना चाहते थे कि उनको भावी प्रबंधक या इंचार्ज बना दिया जाये । अगर उनको खुद पुस्तकालय बनाना और चलाना है तो उनको कोई रूचि नहीं है । उन्होंने महसूस किया कि सरकारी दफ्तरों में लोग बैठे हैं किसी गिद्ध की तरह नज़र लगाए हुए जो उनके पास आने वालों की बोटी बोटी नोच कर खाने की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं । पढ़ लिख कर बड़े ओहदे पर आसीन होकर भी उनकी लोभ लालच की पैसे की हवस ख़त्म ही नहीं होती कभी । तमाम कोशिशें कर भी उनको ज़मीन नहीं मिली और वह डेढ़ करोड़ विदेशी मुद्रा ले कर वापस चले गए थे । जब अख़बारों में ये खबर छपी तो कितने ही नेताओं और अधिकारियों से समाज सेवा का मुखौटा लगाए लोगों को बड़ी मायूसी हुई , सोचते कि काश रौशन आहूजा उनसे मिलते तो वे उसे शीशे में उतार सकते थे । कोई मुख्यमंत्री उनसे अपने राज्य में निवेश करवाने की बात करता तो कोई सेठ साहूकार उनको समझाता कि पढ़ाई लिखाई में क्या रखा है अपनी बेटी के नाम से सांझेदारी में कंपनी खोल कर खूब कमाई कर सकते हैं । यहां सरकारी अधिकारी मिलकर बांटते हैं खाते खिलाते हैं ऐसा कभी नहीं होने देते की घर आई आसामी हाथ से निकल जाये , इतनी बड़ी चूक कैसे हुई , ज़मीन देकर भी उनको अपने बिछाये जाल में तड़पाया जा सकता था । विभाग पूरी कीमत देकर खरीदे प्लॉट पर अलॉटी को जीवन भर ठगता रहता है उनको कटघरे में खड़ा कर , घर बनवाना उनका मकसद नहीं धंधा है जिसे हर मुख्यमंत्री खुद अपने आधीन रखता है यही राम नाम की लूट है कुछ खास लोगों को मिलती छूट है ।
आपको लग रहा होगा इतने साल बाद मुझे उनकी याद कैसे आई है । हरियाणा सरकार ने किसी सत्ताधरी दल के राजनेता की ट्रस्ट को करोड़ों की कृषि भूमि लीज़ पर दी है 33 वर्ष के लिए । दल कोई भी हो राजनेताओं का भूमाफिया खेल कभी थमता नहीं है और सरकारी विभाग की निगाह इस तरफ नहीं जाती है ।शासक राजनेता का करीबी आज भी पांच हज़ार एकड़ ज़मीन खरीद सकता है कौड़ियों के दाम पर नवी मुंबई में और कोई शहंशाह कहलाता हैं करोड़पति खेल से पहचान है लोनावला में खेती की ज़मीन खरीद सकता हैं फ़र्ज़ी किसान का प्रमाणपत्र बनवाकर । सरकार और सरकारी विभागों के काले कारनामों पर पर्दा डालते हैं जो लोग सच का दर्पण और खुद को लोकतंत्र का रखवाला कहते हैं अन्यथा आयोग जांच कर सकता कोई तो इस हम्माम में सभी नंगे हैं । मुंबई से अधिक प्लॉट्स फ़्लैट गुरुग्राम में सभी रिश्वतखोर अधिकारियों नेताओं के आसानी से जांच की जा सकती है मगर संसद में सभी एकमत है आपसी भाईचारा कायम रखना है । क्या आपको मालूम है कि पूर्व प्रधानमंत्रियों ने कब कहां पहाड़ों पर अपने आलीशान महल बनवाये नियम कानून सभी बदलने पड़े , जबकि वो कभी जाकर उन घरों में रहे ही नहीं । आपके हमारे हर शहर में सरकार अपने खास लोगों को जगह देती है जिस सामाजिक कार्य करने को वो उन जगहों पर होटल शोरूम दुकानें बनाकर मालामाल हो रहे हैं कभी कोई नहीं पूछता उचित अनुचित की बात । ये तलवार सामन्य नागरिक की गर्दन पर लटकी रहती है हमेशा यही हमारा रामराज्य है धर्म है जनकल्याण कहलाता है । अभी इस पोस्ट को यहीं पर छोड़ते हैं अगली पोस्ट में 78 साल बाद हमारे देश की वास्तविकता पर चर्चा की जाएगी ।
( शेष अगली पोस्ट पर जारी है )
( आज मेरा जैसा अनुभव है कोई जवाब देना दूर प्रधानमंत्री को भेजे साधरण नागरिक के पत्र ईमेल उनकी जानकारी में ही नहीं होते बल्कि पीएमओ में बैठे लोग संवेदना रहित गंभीर बात को औपचारिक समझ कूड़ेदान में फेंकते हैं अथवा तथकथित जनशिकायत पोर्टल पर दर्ज कर अगले दिन कोई नोडल अधिकारी निपटान करने का संदेश भेज देता है नीचे देख सकते हैं । )
{ Your grievance has been successfully registered in Public Grievances
Portal.please note your Registration Number - PMOPG/D/2025/0048676 for
later references}
[ पंजीकरण संख्या PMOPG/D/2025/0048676 के साथ आपकी शिकायत का निपटारा कर दिया गया है। विवरण के लिए https://pgportal.gov.in पर जाएँ और प्रतिक्रिया सबमिट करें। आप कॉल सेंटर एजेंट को भी फीडबैक दे सकते हैं जो शीघ्र ही आपसे संपर्क करेगा। ]
1 टिप्पणी:
Uchch prashasan ki nishkriyata pr achche log achche manak tay nhi kr pate...Giddh baithe hn sab jgh 👍👌
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