छुपा - छुपी खेल रहे हैं ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया
बड़ी उम्र में भी बचपन के खेल खेलना जिनकी आदत होती है उनको हुनर आता है आधी अधूरी बात बताने का जितनी बताते हैं उस से ज़्यादा छुपा लेते हैं । राज़ खुल गया तो कहते हैं बताया तो था मगर लगा जितनी ज़रूरी है उतनी बताना चाहिए । घर दफ़्तर की हर बात बताना संभव नहीं होता है कांट छांट करना मज़बूरी है कुछ दूरी कुछ फासले रखना समझदारी है । इक अंग्रेजी कहावत है कि जो अपनी पत्नी को सभी कुछ जो भी जानता है बता देता है , वो कुछ भी नहीं जानता है । लेकिन कोई कितना भी चतुर सुजान हो पत्नी से कुछ भी छिपा रहता नहीं है आधुनिक युग में स्मार्ट फ़ोन से लेकर पति के सहयोगी मित्र से तमाम अन्य सूत्र होते हैं जिस का उपयोग करना हर नारी जानती है । मेरा जीवन खुली किताब है कहने वाले किताब में सूखे फूल को लेकर लाख कोशिश करें इश्क़ छुपाने से छिपता नहीं है । अनारकली जानती है कि बादशाह को चुनौती देना मुसीबत को दावत देना है , पर्दा नहीं जब कोई खुदा से बंदों से पर्दा करना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या । आंकड़े छुपाना हमेशा सरकार की आदत रही है , कभी अपनी असलियत छुपाना जो नहीं हैं बताना भी राजनीति का हिस्सा समझे जाते हैं ।
पारदर्शिता सामाजिक सार्वजनिक जीवन में आवश्यक है , लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है देश समाज से कुछ भी छिपाने से शंका होती है कि सच को सामने लाना चाहिए । पत्रकारिता का पहला सबक खबर की परिभाषा से शुरू होता है , ' खबर वो सूचना है जो जनता से छुपाई जा रही है पत्रकार का फ़र्ज़ है उस की तलाश करना और सभी तक पहुंचाना ' , इसको भुलाना पीत पत्रकारिता कहलाता है । लेकिन जब पैसे से विज्ञापन और तमाम अन्य भौतिक संसाधन मिलने से पत्रकार उसी बात का चौबीस घंटे शोर मचाते हैं जिस का डंका शासक पीटते हैं तब माजरा संगीन लगता है । जनता की तरफ नहीं सत्ता संग रंगरलियां मनाना खुद ही अपनी मान मर्यादा का त्याग कर चाटुकारिता करने को पत्रकारिता का पतन कहलाता है । कितने ही लोग खुद अपनी असली सूरत नहीं दिखलाते तो छुपने छुपाने की ज़रूरत होती है । शरारती बच्चे अध्यापक की नज़र से बचने को कभी किसी कभी किसी की ओट लेकर छुपने की कोशिश करते हैं , आजकल शासक पत्रकार से इंसाफ़ की कुर्सी पर आसीन लोग आपस में तालमेल बिठाकर इक दूजे को ढकने का प्रयास करते करते खुद अपने आप को ही नंगा कर रहे हैं ।
बड़े बड़े लोग खुद कभी अपनी आत्मकथा लिखा करते थे और तमाम ऐसी घटनाएं जिनका किसी को पता नहीं था सार्वजनिक करते थे । मकसद होता था अपनी सफलताओं विफलताओं के पीछे कितना कुछ रहता हैं जिनसे कुछ होता कुछ नहीं संभव होता है । इधर जीवनी शासकों की किसी से लिखवाई जाती है जिस में केवल उजला पक्ष दर्शाया जाता है कालिख़ लगाने की बात नहीं सामने आती है । सत्ताधरी की ऐसी जीवनी सरकारी और निजी कॉलेज पुस्तकालय को खरीदने को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कहता है ऊंचे दाम पर मगर बाद में वही पुस्तक आपको मिल सकती है बेहद सस्ते दाम पर । साहस का काम होता है अपने द्वारा हुए अनुचित कार्यों की बात को स्वीकार करना , आजकल कौन इतना सच्चा है इक कसौटी पर खरा उतरना जो चाहता हो , अपना गुणगान करवाना कोई बड़ा काम नहीं होता है । अपनी ऊंचाई को बढ़ाने को किसी चोटी पर खड़े होने की ज़रूरत बौने लोगों को पड़ती है और कुछ लालबहादुर छोटे कद के भी किरादर से बड़े साबित होते हैं दुनिया की नज़र में ।
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