अगस्त 21, 2025

POST : 2001 अपराधियों की लक्ष्मणरेखा ( व्यंग्य - विनोद ) डॉ लोक सेतिया

  अपराधियों की लक्ष्मणरेखा ( व्यंग्य - विनोद ) डॉ लोक सेतिया 

हद निर्धारित करना ज़रूरी है , अपराध करना बुरा नहीं है अपराध कर आप राजनीति में प्रवेश करने को स्वतंत्र हैं , आप सांसद विधायक बनकर मौज से सत्ता की मलाई खाने का कार्य कर सकते हैं समर्थन देकर सरकार बनवा कर । लेकिन आप खुद सरकार नहीं बन सकते , मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना सीमा का उलंघन करना है । संसद विधायक ही नहीं धनवान उद्योगपति भी चंदा देकर पर्दे के पीछे छुपकर कुछ भी कर सकते हैं करवा सकते हैं लेकिन लोभ लालच की लक्ष्मणरेखा का पालन करना ज़रूरी है । यहां आपको रामायण काल की बात पर नहीं सोचना कि रावण कौन है लक्ष्मण कौन सीता कौन , आधुनिक युग में कब किरदार बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता है रावण सीता को ही लक्ष्मणरेखा  से बाहर आने को विवश कर हरण करे ज़रूरी नहीं है आधुनिक युग में कोई नारी किसी सीमा को लांघने से संकोच नहीं करती है । ये अपराधी बाहुबली राजनेताओं को चेतावनी है कि गंभीर से गंभीर अपराध कर के भी आप जीवन भर सज़ा से बच कर सब कुछ हासिल कर सकते हैं सिर्फ सर्वोच्च पद पर बैठना संभव नहीं मना है । इसको नया भारत कहते हैं सत्ता की हवेली में गुनाहों के झरने जब बहते हैं मुजरिम बेगुनाह समझे जाते हैं शीशे के महल किसी हाल नहीं ढहते हैं । पत्थरों का शहर है पत्थर के लोग बसते हैं दिल भी शीशे के नहीं होते और मोम की तरह इंसान पिघलते नहीं हैं बर्फ़ जैसे मिजाज़ हैं किसी धूप से गर्मी से भी पानी पानी नहीं होते हैं ग़ज़ब की बात है ।अपराधी भी मासूम चेहरे वाले दिखाई देते हैं और शरीफ़ लोग भी कभी शक़्ल सूरत से डरावने लगते हैं , इधर नायक ख़लनायक अच्छाई बुराई की पहचान बदल गई है । 
 
अपराध और अपराधी भी देश की व्यवस्था का इक अंग हैं , सिर्फ अदालतों की आवश्यकता नहीं है कितने लोगों की रोटी उन्हीं के दारोमदार पर निर्भर है ।  राजनेताओं की राजनीति को खाद पानी उन्हीं से मिलता है अपराधी जनता के लिए दुःखदायी भले हों सत्ता पुलिस राजनेताओं के लिए हमेशा काम आते हैं । कभी भी किसी शासक ने अपराध को मिटाने की कोशिश नहीं की है बढ़ाने को कोई कसर नहीं छोड़ी है । आपने कभी किसी वैश्या का ठिकाना देखा है उसकी सुरक्षा से लेकर उसका धंधा चलाने तक कोई शरीफ़ काम आता है न कोई पुलिस या कोई सरकार , उनके बाज़ार में उनकी सत्ता चलती है उनके कायदे कानून लागू होते हैं । राजनीति भी वैश्यवृति जैसी है जिस में ईमान बेच कर कुछ भी मिलता है , राजनेताओं को चुनाव में रैलियों को आयोजित करने में अपराधी बहुत काम आते हैं । आजकल लोग खुद अपनी मर्ज़ी से कहां आते हैं नेताओं की झूठी बातें सुनकर ताली बजाने , सभी उनकी वास्तविकता जान चुके हैं । अपराधी को मंच से नेता जी आदरणीय और लोकप्रिय कहते हैं जबकि जानते हैं कि सच्चाई क्या है । जनता जितना पुलिस से डरती है उस से अधिक आपराधिक छवि वाले बदमाशों से घबराती है बच कर चलती है । राजनेताओं को मालूम है आजकल पुराना समय नहीं जब जनता अपने नेताओं को प्यार से भरोसे से चुना करती थी , आज जनता को भयभीत होना पड़ता है कि उनको वोट नहीं डाला तो क्या क्या होना संभव है । 
 
मुख्यमंत्री बनते ही लोग खुद ही अपने ख़िलाफ़ दायर मुक़दमें वापस लेकर शराफ़त का प्रमाण हासिल कर लिया करते हैं । कितने ही अपराध मुख्यमंत्री बनकर राजनेता करते रहे और सबूत गवाह मिटाते रहे कोई अदालत कोई न्यायधीश कुछ नहीं कर सका न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हमेशा सत्ता की सहयोगी साबित हुई है । कितने जुर्म कैसे भी अपराध कर अपराधी राजनीति की शरण में आकर बेगुनाह साबित होने की राहें बनाते रहे हैं , इसलिए उनके लिए इक सीमा निर्धारित करनी ज़रूरी है । आपको याद है बिल्ली और शेर की कहानी बिल्ली शेर की मौसी है उसने शेर को सभी दांव पेच सिखलाये थे लेकिन जैसे शेर को लगा कि सभी सबक सीख लिए शेर झपटा था बिल्ली को खाने को । तब बिल्ली पेड़ पर चढ़ गई छलांग लगा कर , शेर ने पूछा मुझे ये करना तो नहीं सिखाया था । माजरा कुछ वैसा ही है खुद अपने को बचाने को इक पैंतरा ऐसा ज़रूरी है जिस को गुरु किसी शिष्य को कभी नहीं सिखलाता है । बिल्ली कौन शेर कौन है समझने को पहले आपको लोमड़ी को लेकर जानकारी हासिल करनी पड़ेगी , समझ आई बात ।  
 
 बिल्ली को 'मौसी' क्यों कहते हैं? 99% लोग नहीं जानते होंगे ये बात - Guru ka  Gyan

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