जिस्म यहां , आत्माएं विदेश भटकती ( राजनैतिक व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
हमारे देश के राजनेताओं की दशा यही है , मैंने करीब तीस साल पहले इक रचना लिखी थी ' विदेश जाओ हमेशा के लिए ' पब्लिश हुई थी लेकिन अब खो गई है शायद बंद अलमारी में किसी बंडल या फ़ाइल में दबी पड़ी होगी । शीर्षक याद है बाकि कुछ याद नहीं अब समय बदल गया है और हालत पहले से खराब हो गई है ।आजकल अधिकांश राजनेताओं की रूह ही नहीं ज़मीर तक किसी एक नहीं कितने विदेशी शानदार महलों में कैद नहीं है खुद बसती है रंगरलियां मनाती है । शासक ही नहीं सभी दलों को अपने देश की गरीबी बदहाली से दूर किसी खुशहाल माहौल में रहना आनंददायक लगता है , अपने देश की जनता से प्यार सिर्फ वोट पाने के वक़्त उमड़ता है अन्यथा दिल में उनकी छवि भेड़ बकरियों जैसी लगती है । शासक राजनेताओं प्रशासनिक अधिकारियों को विदेश सैर सपाटे और तरह तरह के आयोजन में जाकर कोई सोच समझ नहीं विकसित हो सकती हैं बल्कि विदेशी चकाचौंध जगमगाहट से भृमित होकर असली नकली का भेद करना छूट जाता है । अधिकांश भारतीय राजनेताओं और प्रशासनिक लोगों से लेकर शिक्षित वर्ग क्या धनवान उद्योगपति से तमाम संतों सन्यासियों को विदेशी मोह मायाजाल ने जकड़ कर अपना ग़ुलाम बना लिया है । उन्होंने देश से अर्जित अपनी आमदनी धन दौलत को विदेशों में निवेश किया हुआ है छुपाया हुआ है । देश में उनको सभी कुछ हासिल होता है तब भी चैन विदेश में मिलता है कुछ अजब मानसिकता है रहना चाहते कहीं हैं मगर रहना पड़ता कहीं और है । आपने प्रेम कथाओं में पढ़ा होगा ये अलग ढंग की मुहब्बत है देश की जनता पत्नी की तरह मुसीबत लगती है मगर झूठ मूठ प्यार जतलाना पड़ता है साथ निभाना मज़बूरी है , प्रेमिका कोई अन्य देश है कभी एक नहीं कितने देश अफ़सोस उनसे ठोकर खाकर भी खुश होते हैं यही आशिक़ी होती है ।
सभी बड़े और विकसित देशों के राजनेता से साधरण लोग तक अपने देश को सबसे महान मानते है , लेकिन भारतवर्ष जैसे कुछ देश हैं जहां के शासक अपने देश अपने नागरिकों को पसंद ही नहीं करते उनका याराना उनकी दोस्ती मधुर संबंध विदेशी लोगों से होते हैं । जो मज़ा उनको विदेशी धरती पर कुछ पलों को मिलने वाले आदर सत्कार पुरस्कार से मिलता है देश की जनता से मिलने वाले अपनत्व से अधिक महत्वपूर्ण लगता है । घर की मुर्गी दाल बराबर लगती है , जनता घर की मुर्गी है कभी रोज़ एक अंडा सोने का देना भी कम लगता है तो एक साथ काटने की बात करते हैं शासक सरकार प्रशासन मगर भूखे रहते हैं हमेशा । कभी कभी उनको लगता है कहीं किसी शानदार विदेश में जाकर बस जाएं मगर परेशानी है कि किसी और देश में ऐसे मतलबी और नाकाबिल लोगों को अहमियत नहीं मिल सकती । अगर भारत देश के शासक प्रशासक नहीं होते तो उनकी हैसियत दो कौड़ी की भी किसी देश में नहीं समझी जाती । हमको गर्व है कि हमारे देश के ये खोटे सिक्के विदेश में चलते ही नहीं दौड़ते हैं इसी को हमारे लोकतंत्र की ताकत कहते हैं । ये अध्याय नहीं है पूर्वकथन जैसा है मगर अब पूरी रामायण महाभारत लिखना कठिन पढ़ना असंभव है अत: इसको गागर में सागर समझ कर खुद विश्लेषण कर अथाह की थाह का विस्तार पाने की आवश्यकता है । किसी दार्शनिक का कहना है कि भारत के सभी राजनेताओं को विदेश भेजना देश और जनता के लिए कल्याणकारी साबित होगा मगर कौन ये शुभ कार्य कैसे करे इस पर शोध होना बाक़ी है ।
1 टिप्पणी:
सार्थक लेख आज के दौर के नेताओ पर👌👍
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