सब पराए हैं ज़िंदगी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
सब पराए हैं ज़िंदगी ,
देख आए हैं ज़िंदगी ।
बिन बुलाए ही आ गए ,
चोट खाए हैं ज़िंदगी ।
हम खिज़ाओं के दौर में ,
फूल लाए हैं ज़िंदगी ।
कौन दुश्मन है दोस्त भी ,
आज़माएं हैं ज़िंदगी ।
छा रही हर तरफ ख़िज़ा ,
गुल खिलाए हैं ज़िंदगी ।
छोड़ सारा जहान घर ,
लौट आए हैं ज़िंदगी ।
दर्द के गीत शाम - सुब्ह ,
गुनगुनाए हैं ज़िंदगी ।
1 टिप्पणी:
Kya kahne sir hum khizao ke daur me phool 👌👍
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