अगस्त 17, 2025

POST : 1998 सब पराए हैं ज़िंदगी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

 सब पराए हैं ज़िंदगी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 


सब पराए हैं ज़िंदगी , 
देख आए हैं ज़िंदगी । 
 
बिन बुलाए ही आ गए , 
चोट खाए हैं ज़िंदगी । 
 
हम खिज़ाओं के दौर में , 
फूल लाए हैं ज़िंदगी । 
 
कौन दुश्मन है दोस्त भी , 
आज़माएं हैं ज़िंदगी । 
 
छा रही हर तरफ ख़िज़ा , 
गुल खिलाए हैं ज़िंदगी । 
 
छोड़ सारा जहान घर , 
लौट आए हैं ज़िंदगी । 
 
दर्द के गीत शाम - सुब्ह , 
गुनगुनाए     हैं ज़िंदगी । 
 

 
 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Kya kahne sir hum khizao ke daur me phool 👌👍