आप की खातिर ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
सहे ग़म उसकी ख़ुशी की खातिर
तो मुस्कराए उसी की खातिर ।
हमारा मरना जो चाहता था
जिये हम उस आदमी की खातिर ।
जो शहर में तेरे लौट आये
है दिल की ये बेबसी की खातिर ।
ये ज़िंदगी जिसकी है अमानत
पिया है ये ज़हर उसी की खातिर ।
मुआफ़ करना कि डूब कर की
ये ख़ुदकुशी आप ही की खातिर ।
1 टिप्पणी:
Whhh bahut bdhiya ashaar👌👍
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