अक्तूबर 30, 2023

खुदाओं की खुदाई का राज़ ( व्यंग्य - विनोद ) डॉ लोक सेतिया

     खुदाओं की खुदाई का राज़ ( व्यंग्य - विनोद ) डॉ लोक सेतिया 

विधाता ईश्वर अल्लाह भगवान समझ सका नहीं कोई इंसान , हम सभी हैं बड़े नादान , क्या देवता और क्या शैतान सबकी अपनी अपनी शान । ये दुनिया नहीं थी ऐसी कभी भी सुनते हैं कहते हैं सभी भले लोग हुआ करते थे धरती पर देवता बसा करते थे । जाने राक्षस किधर से आये शायद किसी ने दिखलाए खुद ही अपने बढ़ते हुए साये , सभी खुद अपने आप से रहते थे घबराए । हर युग में कुछ लोग जो बड़े महान और शासक कहलाए उन्होंने अपनी सुविधा से नियम कायदे खुद बनाए अपने लिए रास्ते बनाने को बचने को तरीके समझाए । कौन उनसे कैसे टकराए जिनकी लाठी इंसाफ कहलाए । उन्होंने अजब दस्तूर बनाए कभी वरदान कभी अभिशाप को लेकर मनचाहा जो भी किया सभी ढंग आज़माए । हम उस व्यवस्था को कभी नहीं समझे जाने कितने कितने भगवान बनाकर आखिर हैं लोग पछताए , उनकी मर्ज़ी हंसाए या रुलाए ये परंपरा हर किसी के मन भाए हर कोई उसके गुण गाये , खुद में सभी अवगुण देखे शरमाए । इक दिन ऐसा भी आया कुछ लोगों ने मिलकर अपना संविधान बनाया और शासनतंत्र का खेल रचाया ईश्वर खुदा देवता शरीफ इंसान कोई भी कुछ जाना नहीं पाया । राजनीति का ऐसा जाल बिछाया जिस में उलझा फिर नहीं बच पाया एक एक कर धीरे धीरे सब ने अपना वर्चस्व बढ़ाया अपना अपना खेल दिखाकर दुनिया को ऐसा उलझाया बस कोई जाल से बच नहीं पाया । हर शातिर ने खुद को मसीहा बाक़ी को ज़ालिम बताया इस तरह राजा सिंघासन पर बैठा सबने उसका भोग लगाया बचा खुचा बांट कर जनता में बड़ा दयावान शासक कहलाया । 
 
सुनो सुनाएं तुम्हें कहानी इक था राजा इक थी रानी लगाई आग और बरसा पानी नानी भी थी बड़ी स्यानी उसकी परियां भी ज़ाफ़रानी । पढ़ना लिखना जिनको आया उन्होंने दरबारी बन खूब नाम कमाया लेकिन कभी कभी कोई ऐसा भी आया जिस ने देखा राजा तो है नंगा और उस ने शोर मचाया । राजा को जब गुस्सा आया उस ने सच को सूली पर चढ़ाया , तब से सच लापता है झूठ है सच सब जानता है । अब इस धरती पर कोई भगवान नहीं रहता है मैं हूं बस ये  हर शैतान है कहता , आदमी बेबस और बेचारा फिरता है मारा मारा । नहीं यहां भलाई का होता गुज़ारा उपदेशक है कोई आवारा ,  इक वही है सौ से भारा तीन तेरहा का नहीं गुज़ारा । झूठ विजयी हुआ सच गया मारा जो जीता सब आखिर हारा ये दुनिया बड़ी निराली है इसकी फितरत ही काली है । सब कुछ वही रहता है कहने को बैसाखी है होली है दीवाली है किस्मत बड़ी मतवाली है जिस ने खून पिया है उस चेहरे पर लाली है ।  
 
कितने कितने ब्रांड बने हैं बंदे खुद भगवान बने हैं सारी दुनिया भूखी लेकिन बस कुछ लोग भोग विलास की खान बने हैं सत्ता की चौखट पर बंधे चाटुकार ऊंची शान बने हैं । ऊंची जिनकी हैं दुकानें फ़ीके सब पकवान बने हैं । नहीं किसी काम की संतों की बाणी रेत चमकती लगता पानी जिस ने समझी उसने जानी है किसी युग की काल्पनिक कथा कहानी । अब अच्छे बुरे का फल नहीं मिलता किसी सवाल का सही हल नहीं मिलता है कल क्या होगा किस ने देखा आज कहीं भी कल नहीं मिलता । शायद था इक खोटा सिक्का चोर लुटेरों ने खूब चलाया धर्म ईश्वर क्या क्या कहकर सब से छीना जमकर खाया ये कड़वा सच किसी को नहीं भाता है पर अपना भी क्या जाता है झूठ का सबका अपना बही-खाता है । सबने अपकर्मों को मिटा दिया है सब मीठा है खिला दिया है दुनिया में कोई भी शैतान नहीं है बुरा कोई इंसान नहीं है दानवीर हैं सब देश समाज की भलाई करते हैं पर कहां है ये कोई हैरान नहीं है । अब फूलों में खुशबू नहीं है पीतल का वो गुलदान नहीं है देखो आईना क्या कहता है सब खड़े हैं किसी सीढ़ी पर कद से कोई बड़ा नहीं है महामानव हैं मानवता का नाम नहीं है । स्वर्ग और नर्क की वास्तविकता कुछ ऐसी है , इक कविता पढ़ते हैं । नर्क में अब कोई पापी नहीं है सब पाप करने वाले इसी धरती पर हैं शेक्सपीयर कहते हैं । 
 

श्रद्धांजलि सभा ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

 
टेड़ा है बहुत 
स्वर्ग और नर्क का सवाल 
सुलझाएं जितना इसे 
उजझता जाता है जाल ।

आपको दिखलाता हूं 
मैं आंखों देखा हाल 
देखोगे इक दिन आप भी 
मैंने जो देखा कमाल ।

बहुत भीड़ थी स्वर्ग में 
बड़ा बुरा वहां का हाल 
छीना झपटी मारा मारी
और बेढंगी थी चाल ।

नर्क को जाकर देखा 
कुछ और ही थी उसकी बात 
दिन सुहाना था वहां 
और शांत लग रही रात ।

पूछा था भगवान से 
स्वर्ग और नर्क हैं क्या 
और उसने मुझे 
ये सब कुछ दिया था दिखा ।

घबराने लगा जब मैं 
थाम कर तब मेरा हाथ 
बतलाई थी भगवान ने 
तब मुझे सारी बात ।

श्रधांजली सभा होती है 
सब के मरने के बाद 
सब मिल कर जहां 
करते हैं मुझसे फ़रियाद
स्वर्ग लोक में दे दूं 
सबको मैं कुछ स्थान 
बेबस हो गया हूं मैं 
अपने भगतों की बात मान ।

शोक सभाओं में 
ऐसा भी कहते हैं लोग 
स्वर्ग लोक को जाएगा 
आये  हैं जो इतने लोग ।

देखकर शोकसभाओं की भीड़ 
घबरा जाता हूँ मैं 
मुझको भी होने लगा है 
लोकतंत्र सा कोई रोग ।

कहां जाना चाहते हो 
सब से पूछते हैं हम 
नर्क नहीं मांगता कोई 
जगह स्वर्ग में है कम ।

नर्क वालों के पास 
है बहुत ही स्थान 
वहां रहने वालों की 
है अलग ही शान 
रहते हैं वहां 
सब अफसर डॉक्टर वकील 
बात बात पर देते हैं 
वे कोई नई दलील ।

करवा ली हैं बंद मुझसे 
नर्क की सब सजाएं 
देकर रोज़ मानवाधिकारों की दुआएं ।

बना ली है नर्क वालों ने 
अपनी दुनिया रंगीन 
मांगने पर स्वर्ग वालों को 
मिलती नहीं ज़मीन ।

नर्क ने बनवा ली हैं
ऊंची ऊंची दीवारें 
स्वर्ग में लगी हुई हैं 
बस कांटेदार तारें
नर्क में ही रहते हैं 
सब के सब बिल्डर 
स्वर्ग में बन नहीं सकता कोई भी घर ।

स्वर्ग नर्क से दूर भी 
बैठे थे कुछ नादान 
फुटपाथ पे पड़ा हुआ था 
जिनका सामान
उन्हें नहीं मिल सका था 
दोनों जगह प्रवेश 
जो रहते थे पृथ्वी पर 
बन कर खुद भगवान ।

किया था भगवान ने 
मुझसे वही सवाल 
स्वर्ग नर्क या है बस
मुक्ति का ही ख्याल ।

कहा मैंने तब सुन लो 
ए दुनिया के तात 
दोहराता हूँ मैं आज 
एक कवि की बात ।

मुक्ति दे देना तुम 
गरीब को भूख से 
दिला सको तो दिला दो 
मानव को घृणा से मुक्ति
और नारी को 
दे देना मुक्ति अत्याचार से 
मुझे जन्म देते रहना 
बार बार इनके निमित ।

मित्रो
मेरे लिये  स्वर्ग की 
प्रार्थना मत करना 
न ही कभी मेरी 
मुक्ति की तुम दुआ करना
मेरी इस बात को 
तब भूल मत जाना 
मेरी श्रधांजली सभा में 
जब भी आना । 
 

 

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