अक्तूबर 27, 2023

ये दुनिया दोस्ती का बाज़ार नहीं है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

        ये दुनिया दोस्ती का बाज़ार नहीं है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया 

ये दुनिया दोस्ती का बाज़ार नहीं है 
यहां कोई किसी का दिलदार नहीं है । 
 
हुई ख़ामोश महफ़िल सारी बिन तेरे 
पड़े हैं साज़ कितने झंकार नहीं है । 
 
गई खो रौनकें सब सुनसान नज़ारे 
महकता था सदा जो गुलज़ार नहीं है । 
 
वो रातें चांदनी हम तुम साथ वहां पर 
बिना बोले समझ ले ग़मख़्वार नहीं है । 
 
तुझी को याद कर के सब उम्र कटेगी 
कि तुझसा और कोई भी यार नहीं है । 
 
बड़ी अच्छी हमें लगती गलियां लेकिन 
ठहरने को वहां पर घर बार नहीं है । 
 
बहुत ' तनहा ' रहेंगी शामें भी सहर भी 
लगे दिल अब कभी भी आसार नहीं है ।  




 
 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Waah...ठहरने का वहां घरबार👌👍