वो अफ़साने कहां जाएं ( अनकही ) डॉ लोक सेतिया
पहले इक पुरानी कविता जो ' एहसासों के फूल ' कविता संग्रह में शामिल है ।
भाग्य लिखने वाले ( कविता )
विधाता हो तुमलिखते हो
सभी का भाग्य
जानता नहीं कोई
क्या लिख दिया तुमने
किसलिए
किस के भाग्य में ।
सब को होगी तमन्ना
अपना भाग्य जानने की
मुझे नहीं जानना
क्या क्यों लिखा तुमने
मेरे नसीब में
लेकिन
कहना है तुमसे यही ।
भूल गये लिखना
वही शब्द क्यों
करना था प्रारम्भ जिस से
लिखना नसीबा मेरा ।
तुम चाहे जो भी
लिखो किसी के भाग्य में
याद रखना
हमेशा ही एक शब्द लिखना
प्यार मुहब्बत स्नेह प्रेम ।
मर्ज़ी है तुम्हारी दे दो चाहे
जीवन की सारी खुशियां
या उम्र भर केवल तड़पना
मगर लिख देना सभी के भाग्य में
अवश्य यही एक शब्द
प्यार प्यार सिर्फ प्यार ।
कल पढ़ा इक महिला मित्र ने फेसबुक पर लिखा हुआ था जब भी हम निराश हो जाते हैं तब कहीं से किसी के प्यार की रौशनी हमको नज़र आती है जो अपने कुछ प्यार भरे बोलों से हमारी निराशा को आशा में परिवर्तित कर देती है । मैंने हमेशा विश्वास किया है कि जिसे प्यार सच्चा दोस्त मिल जाए उसको जीवन में कोई कठिनाई उसे कभी विचलित नहीं कर सकती है । मैंने हमेशा कहा है कि मेरा लेखन इक दोस्त की तलाश है बल्कि उसी के नाम है । अपनी जीवनी को लेकर इक बार मैंने इक संकलन ' कैसे होते हैं साहित्यकार ' में मैंने जो लिखा था दोहराता हूं ।
मैंने लिखना डायरी से शुरू किया था , अपने मन की बात किसी से कहना नहीं आता था , खुद अपनी बात अपने साथ करना आदत बन गया । जैसे कोई डरकर चोरी छुपे इक अपराध करता है मैंने अपना लेखन इसी ढंग से किया है मुझे हतोत्साहित करने वाले तमाम लोग थे बढ़ावा देने पीठ थपथपाने वाला कोई भी नहीं । इसलिए मुझे सभी पढ़ने वालों से ये कहना ज़रूरी लगता है कि पढ़ते हुए इस अंतर को अवश्य ध्यान रखना । आपको शायद ये फर्क इस तरह समझ आ सकता है । जैसे कोई इक पौधा किसी रेगिस्तान में उग जाता है जिसे राह चलते कदम कुचलते रहते हैं आंधी तूफान झेलता है कोई जानवर उखाड़ता है खाता है मिटाता है मगर फिर बार बार वो पौधा पनपने लगता है । कुछ लोग जिनको साहित्यिक माहौल और मार्गदर्शन मिलता है बढ़ावा देते हैं जिनको उनके आस पास के लोग , वे ऐसे पौधे होते हैं जिनको कोई माली सींचता है खाद पानी देता है उसकी सुरक्षा को बाड़ लगाता है ऊंचा फलदार पेड़ बन जाते हैं । मेरा बौनापन और उनका ऊंचा कद दोनों को मिले माहौल से है इसलिए मेरी तुलना उनसे नहीं करना ।
मैंने साहित्य पढ़ा भी बहुत कम है कुछ किताबें गिनती की और नियमित कई साल तक हिंदी के अख़बार के संपादकीय पन्ने और कुछ मैगज़ीन पढ़ने से समझा है अधिकांश खुद ज़िंदगी की किताब से पढ़ा समझा है । केवल ग़ज़ल के बारे खतोकिताबत से इसलाह मिली है कोई दो साल तक आर पी महरिष जी से । ग़ज़ल से इश्क़ है व्यंग्य सामाजिक विसंगतियों और आडंबर की बातों से चिंतन मनन के कारण लिखने पड़े हैं । कहानियां ज़िंदगी की सच्चाई है और कविताएं मन की गहराई की भावना को अभिव्यक्त करने का माध्यम । लिखना मेरे लिए ज़िंदा रहने को सांस लेने जैसा है बिना लिखे जीना संभव ही नहीं है । लिखना मेरा जूनून है मेरी ज़रूरत भी है और मैंने इसको ईबादत की तरह समझा है ।
अब जहां से बात शुरू की वहां से बात को बढ़ाते हैं , बड़े नसीब वाले होंगे जिनको असफल होने पर अथवा ज़िंदगी से संघर्ष करते समय कोई प्यार करने वाला हिम्मत बढ़ाने हौंसला देने वाला मिलता है । मैंने तो हमेशा पाया है नाकामी होने पर अपने पराये सब खामियां ढूंढते और आपके आत्मविश्वास को मिटाने की बात करते हैं किसी को आपके हालात असफलता के कारण या आपकी कोशिशों से कोई सरोकार नहीं होता है । इस समाज का बस इक पैमाना एक मापदंड रहता है धन दौलत या कुछ नाम शोहरत पाना अन्यथा कोई कितने सार्थक प्रयास करता है कितने आदर्श और मूल्यों पर अडिग रहता है कोई नहीं समझता है । कोई भला विश्वास करेगा कि हम भी दुनिया की तरह सभी हासिल कर सकते थे मगर हमने अपनी आत्मा अपने ज़मीर को बेचना स्वीकार नहीं किया । बचपन से आज तक आसपास तमाम लोग नफ़रत और तिरस्कार करते रहे किसी को हमारा दुःख दर्द दिखाई दिया ही नहीं क्योंकि हमने अपनी बर्बादी की नुमाईश कभी नहीं की और हर जगह हंसते मुस्कुराते रहे । दर्द सब को सुनाएं ये ज़रूरी तो नहीं , हर जगह हम मुस्कुराएं ये ज़रूरी तो नहीं इक बड़ी उम्र की शायरा की ग़ज़ल है ये ।
मुझे ऐसे कई लोग मिलते रहे हैं जिनको खुद उनके अपनों ने हमेशा ठोकरें लगाई जब भी गिर पड़े कोई हाथ बढ़ा नहीं बल्कि उपहास करने तमाशा बनाने को वो भी थे जिनको उन्होंने हमेशा सहारा दिया । लेकिन वो लोग ख़ामोशी से ज़िंदगी भर ज़हर पीते पीते दुनिया से चले गए किसी अपने को उनके होने से कोई फर्क पड़ता था और नहीं रहने से कोई कमी भी नहीं महसूस होती । कुछ दिन पहले इक दोस्त का हाल चाल पूछने गया तो पता चला इक अन्य दोस्त की पत्नी का निधन और उसके बेटे की बातों को लेकर बड़ा दुःख और हैरानी हुई क्योंकि जिस दोस्त के परिवार की बात थी उसे खोये हुए बरसों हो गए किसी को खबर नहीं कौन किस हाल में है या नहीं रहा । उनके जो सबसे करीबी लोग थे उन्होंने ज़रूरी नहीं समझा कि दोस्त की मौत के बाद खबर रखते उनकी ख़ैरियत की न ही उनके बेटे ने अपने पिता के संबंधियों दोस्तों से कोई मेल मिलाप रखा बस पत्नी और ससुराल की बातों में आकर माता बहन से जायदाद को लेकर झगड़ते रहे । जिस की बात कर रहा हूं कॉलेज का दोस्त था लिखता था डायरी पर बड़े भावपूर्ण रचनाएं , कई साल पहले कुछ दोस्तों को लेकर ब्लॉग पर लिखा था तब उन के घर गया पत्नी बेटा नहीं जानते थे उनकी डायरी कहां है जो हमेशा उनके इक छोटे से कमरे में अलमारी में रहती थी । किसी कूड़ेदान में फैंकी गई या कबाड़ी को बेच दी या पता नहीं किस तयखाने में पड़ी होगी । और कितना कुछ है जिसे लिखना लगता है उचित नहीं कुछ हासिल नहीं होगा और दिखावे की झूठी संवेदना मुझे पसंद नहीं , ऐसे अफ़साने कहां जाएं ।
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