फिर नहीं लौटते हैं जाने वाले ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
फिर नहीं लौटते हैं जाने वाले
याद आते बहुत भुलाने वाले ।
हम अगर साथ-साथ मिलकर चलते
क्या सताते हमें ज़माने वाले ।
हम वफ़ा कब तलक निभाते आख़िर
जब गए रूठ सब मनाने वाले ।
लोग जिन पर यकीन करते पूरा
झूठ को वो थे सच बताने वाले ।
उनकी बातें हसीन लगती सबको
जुगनुओं को शमां बनाने वाले ।
नींद आई उन्हें बड़ी गहरी जो
सबको थे नींद से जगाने वाले ।
दर्द ' तनहा ' हमें मिले सब उनसे
वो ज़माने के ग़म मिटाने वाले ।
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