अक्टूबर 05, 2023

अंधेरा है जिनके ज़हनों में ( विचार-विमर्श ) डॉ लोक सेतिया

    अंधेरा है जिनके ज़हनों में ( विचार-विमर्श ) डॉ लोक सेतिया 

लकीर के फ़क़ीर लोग मिलते हैं तमाम जिधर जाएं जहां भी जाएं , उनको जो करना सीख लिया किसी से उम्र भर वही दोहराते रहते हैं । समय के साथ बातों की चीज़ों की उपयोगिकता बदलती रहती है उनको इस से कोई सरोकार नहीं । किसी की महिमा का गुणगान करने लगते हैं तो बस कुछ नहीं सोचते भले व्यक्ति जैसा सब मानते रहे उस से विपरीत आचरण करने लगता हो , उनको यही लगता है भले उस के कितने गंभीर अपराध साबित होते रहे जिसे अपना आदर्श समझ बैठे उसकी हर अनुचित बात का आंखें मूंद कर समर्थन करना ज़रूरी है । बात किसी धार्मिक गुरु की हो या बेशक किसी शासक राजनेता की उनको बस जय-जयकार करनी है इक शब्द उनकी बुरी बातों पर मुंह से निकलता नहीं है । ऐसे लोगों का सफेद झूठ भी उनको सत्य से बड़ा लगता है । उपदेश भाषण कुछ देते हैं जो महान कहलाने वाले लोग लेकिन वास्तविक जीवन में बिल्कुल उल्टा आचरण करते हैं फिर भी उनके प्रशंसक उनके चाहने वाले अनुयाई उन्हीं के भक्त बने रहते हैं । इक बार गलत रास्ते पर चल पड़े तो उसे छोड़ सही मार्ग की तलाश करना उनको ज़रूरी नहीं लगता है । 
 
राजनेता देशभक्ति का जनता की सेवा का भाषण देकर सत्ता मिलते ही संविधान कायदे कानून की धज्जियां उड़ाने में हिचकते नहीं हैं और अधिकारी देश सेवा की ईमानदारी की कर्तव्य निभाने की शपथ भुलाकर अपने पद का जमकर दुरूपयोग करते हैं सामान्य नागरिक को प्रताड़ित करते हैं पर शासक वर्ग धनवान पूंजीपति वर्ग के सामने नतमस्तक होते दिखाई देते हैं । अपना ज़मीर बेच कर अमीर बनने वाले टीवी चैनल अख़बार सोशल मीडिया वाले खुद को लोकतंत्र का रक्षक और अभिव्यक्ति की आज़ादी का पैरोकार घोषित करते हैं पैसे विज्ञापन और विशेषाधिकारों की चाहत में जितना भी संभव हो नीचे गिराते हैं । आपका संगठन आपका धर्म अगर आपको हिंसा नफ़रत की शिक्षा देता हो औरों से भेदभाव करने का गलत पाठ पढ़ाए तब भी आपको उन बातों को अनुचित कहने का साहस नहीं होता है और उन पर कोई सवाल उठाना तो बड़ी दूर की बात है । 
 
कभी कभी बड़ी हैरानी होती है कुछ लोग कहते हैं हमारे देश में कितनी आज़ादी है जो मनमर्ज़ी करने की कोई रोकने टोकने वाला नहीं है । अजीब बात है नियम कायदे तोड़ने की छूट को आज़ादी नाम देते हैं जबकि उनकी ये तथाकथित मनमानी की आदत कितनों का जीवन दूभर करती है । इस से लगता है की हम ने मानवीय मूल्यों को अपने स्वार्थ की खातिर ताक पर रख छोड़ा है और हर अनुचित कार्य बिना संकोच करते हैं तब भी कहलाते सभ्य बागरिक ही हैं । कड़वी बात है मगर खरी है कि देश के शासक राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी अगर अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाएं तो जनता की अधिकांश समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाएं । कारोबार करने वाले व्यौपारी उद्योगपति से शिक्षक डॉक्टर अन्य शिक्षित वर्ग के लोग अनुचित कार्य नहीं कर उचित ढंग से अपनी सेवाएं प्रदान करें जनता को तो ये समाज बड़ा ही खूबसूरत और शानदार बन सकता है । पुलिस और कानून व्यवस्था लागू करने वाले अगर अपराध को बढ़ाने में सहायक नहीं बनकर अपराधमुक्त समाज बनाने का संकल्प निभाएं तो हर नागरिक चैन से निडर होकर सुकून से रह सकता है । संक्षेप में जिसे जैसा करना चाहिए वैसा करना आवश्यक समझने लग जाएं तो देश का हाल बदल सकता है बस अपने निजी स्वार्थ लोभ लालच को छोड़ने की ज़रूरत है ।   
 

 

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