अक्टूबर 13, 2023

पुतले के प्रयोजक की तलाश ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       पुतले के प्रयोजक की तलाश ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

सांध्य दैनिक समाचार पत्र के संपादक जी की चिंता मुझसे देखी नहीं जाती पुरानी दोस्ती है , उनका संपादकीय पढ़ा तो उनकी चिंता मिटाने की चिंता ने मुझे रात भर सोने नहीं दिया । सोचते सोचते समाधान ढूंढ ही लिया और उनको बताना चाहता हूं पर कोई बात को अन्यथा नहीं समझना । समस्या दशहरे पर रावण का पुतला जलाने की है और हैरानी हुई इस अच्छाई की बुराई पर जीत का त्यौहार मनाने को पैसे की कमी है । शहर में दानवीर धनवान बहुत हैं मगर रावण के पुतले को लेकर मुमकिन है कोई अड़चन सामने आती हो तब भी मुझे याद आया कुछ दिन पहले ही इक विराट कवि सम्मेलन शहीद भगत सिंह जी के जन्म दिवस के उपलक्ष में आयोजित किया गया था जिस के निमंत्रण पत्र पर शहीद भगत सिंह , प्रयोजक किसी कारोबार का नाम , नीचे विराट कवि सम्मेलन लिखा हुआ था । थोड़ा कठिन लगा समझने में कि कौन किस का प्रयोजक है । ये कोई अकेली मिसाल नहीं है हर रोज़ किसी हादसे की खबर का यूट्यूब पर वीडियो मिलता है जिस पर कोई न कोई प्रयोजक का प्रचार इश्तिहार दिखाई देता है । कत्ल दुर्घटना लूट हिंसा सभी अनहोनी खबरों के साथ लोग अपना नाम जोड़ने को राज़ी हैं कि धंधे का सवाल है तो रावण के पुतले पर कोई तो अपना नाम लिखवाना चाहेगा । 
 
आजकल आने वाले चुनाव की चर्चा है सभी वोटर को लुभाने को अपनी पहचान बनाने को लगे हुए हैं । ऐसे में कोई न कोई दल तो रावण के पुतले जलाने का प्रयोजक अवश्य बन सकता है बस उनको खबर मिलने की बात है और उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं अवसर को हाथ से जाने नहीं देंगें । इक उलझन भी दिखाई दे रही है कोई भी राजनैतिक दल अपने लिख कर लगाए नाम को जलता नहीं देखना चाहेगा मगर रावण का पुतला कुछ ही पल में धू-धू कर जलकर राख होना लाज़मी है । राजनेताओं का क्या भरोसा कोई अपने विरोधी की ऐसी बात पर व्यंग्य-बाण चला उपहास कर सकता है । हर शहर में उन बाबा जी जैसा कोई नहीं मिलेगा जिनको हर खबर के साथ अपना नाम अपना फोटो वाला इश्तिहार लगने से कोई परेशानी नहीं होती है । इधर आजकल जंग की आतंकवाद की खबर दिन भर दिखाई देती है तब भी उनकी शोहरत की आवश्यकता रहती है । रावण के पुतले को लेकर विवाद पहले भी रहा है इक संगठन के पत्र पत्रिका के इक अंक में सालों पहले रावण का पुतला जलाने का कार्टून बनाया गया था जिस में रावण के हर सर पर इक इक विरोधी नेता का चेहरा लगाया गया था । बस खुद उन के संगठन का नायक तीर कमान लिए खड़ा दिखलाया गया था । बिना सोच विचार कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिसे बाद में उगलते बने न निगलते बने ।    
 
सच तो ये है कि रावण कभी मरता ही नहीं है जिधर देखते हैं कितने रावण दिखाई देते हैं सरकारी कई विभाग रावण के उत्तराधिकार को अपनी विरासत समझ ढोने का कार्य कर रहे हैं । हर जगह रावण ही राम का भेस धारण कर खुद को सबसे अच्छा और महान कहलवा रहे हैं । राम का बनवास कभी ख़त्म नहीं होता है और सीता माता धरती में समाने को छोड़ कोई और आस नहीं लगाए हुए । ग़ज़ल कहने वाले तज़मीनें लिखा करते हैं किसी अन्य शायर का शेर लेकर अपना इक नया शेर लगा कर बात को और भी खूबसूरत बना देते हैं । मेरे गुरूजी आर पी महर्षि जी डॉ आर पी शर्मा ' तफ़्ता ' जी के शेर पर तज़मीन लिखते हैं :-
 

जिसको देखो वही हिर्सो - हवा का रोगी  , 

है सदाचार के बहरूप में कोई भोगी 

उसकी साज़िश का शिकार आज भी सीता होगी  ,

" ये अलग बात कि बाहर से बना है जोगी 

आज के दौर में हर शख़्स है रावण की तरह ।


 

  

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