अब लगे टूटने सब भरम आपके ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
अब लगे टूटने सब भरम आपके
क्या करम आपके क्या थे ग़म आपके ।
वक़्त ने आपकी पोल सब खोल दी
कितने झूठे थे सारे वहम आपके ।
अब मसीहा नहीं मानते लोग भी
काम आये नहीं पेचो-खम आपके ।
सोचना एक दिन ओ अमीरे-शहर
लोग सहते रहे क्यों अलम आपके ।
कब निभाई किसी से वफ़ा आपने
आप किसके हुए कौन हम आपके ।
ज़हर देते रहे सबको कहकर दवा
ख़त्म होंगे कभी क्या सितम आपके ।
खून की बारिशें जिसमें "तनहा" हुईं
लोग देखा करेंगे हरम आपके ।
2 टिप्पणियां:
Shandaar ghzl 👌
👍👌
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