नये दौर की लिख रहे हम कहानी ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
नये दौर की लिख रहे हम कहानी
बढ़ी प्यास जितना पिया जिसने पानी।
कहां खो गईं आज सारी बहारें
सुनो ये हक़ीक़त खिज़ा की ज़ुबानी।
खुदा कल जिसे हर किसी ने कहा था
मिटाने लगा है खुदा की निशानी।
सियासत की तलवार चलने लगी अब
मुहब्बत के किस्से थीं बातें पुरानी।
बगावत दिखाई किया जुर्म कैसे
तुम्हें मार देगी कभी राजधानी।
लगा जिस पे इल्ज़ाम लूटा चमन को
सभी कह रहे आपकी मेहरबानी ।
रही खुशनसीबी यही हमने देखे
वो दिन और "तनहा" वो रातें सुहानी।
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