अप्रैल 29, 2020

उन्हें मिल ही जाते हैं इक दिन किनारे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

        उन्हें मिल ही जाते हैं इक दिन किनारे ( ग़ज़ल ) 

                           डॉ लोक सेतिया "तनहा" 


उन्हें मिल ही जाते हैं इक दिन किनारे 
जो रहते नहीं नाख़ुदा के सहारे। 

कभी तुम भी खेलो मुहब्बत की बाज़ी 
नहीं कोई जीता सभी इस में हारे। 

लिखी जिसने तकदीर हाथों से अपने 
कहो मत उसे तुम नसीबों के मारे। 

हैं खामोशियां छा गईं महफ़िलों में 
कहीं से दे आवाज़ कोई पुकारे। 

सदा अब किसी की नहीं वो भी सुनते 
खड़े किसलिए लोग उनके हैं द्वारे। 

बिना बात देखो सभी लड़ रहे हैं 
सबक प्यार का भूल बैठे हैं सारे। 

ज़रूरत जिसे दोस्ती की है "तनहा"
इनायत करो उसको मुझसे मिला रे।