सच उन्हें देखना नहीं आता ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सच उन्हें देखना नहीं आता
और कुछ बोलना नहीं आता।
हम शिकायत भला करें कैसे
राज़ सब खोलना नहीं आता।
रूठते हम कोई मनाता भी
पर हमें रूठना नहीं आता।
जब कभी साथ साथ होते हैं
सब तभी पूछना नहीं आता।
क्या हुआ जो नहीं मिला "तनहा"
इस तरह सोचना नहीं आता।
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