साथ-साथ हैं दिल में चाहत के बिना ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
ये वही लोग हैं जो हमेशा हमें आपस में लड़वाते बांटने और नफरत का सबक पढ़ाने को लगे रहते हैं। राजनेताओं की ही नहीं धर्म वालों की ही नहीं टीवी चैनल वालों की क्या समाज के हर वर्ग की मानसिकता हम सबसे अच्छे बाकी सभी खराब हैं का शोर मचाते रहने की बन गई है। मगर जब दिखावा करने को कहते हैं किसी दिन किसी अवसर पर हम गले मिलते हैं हाथ मिलाते हैं दिल नहीं मिलते हैं। हैरानी है जिस को विवाह करने के बाद अपनी पत्नी को हम साथ साथ हैं जीवन भर को कहना था मगर साथ छोड़ दिया और जिसने कभी विरोधी दल वाले को दिल से अपना नहीं समझा हर किसी का उपहास किया तमाम पहले हुए नेताओं को खराब और सिर्फ मैं अच्छा साबित करने की राजनीती की देश की जनता को एकता का दिखावा करने को कह रहा है। जब से सत्ता मिली देश भर में नफरत की गंदी राजनीति और न केवल किसी एक संगठन के लोगों को मनोनीत करने तमाम राज्यों और उच्च पदों पर नियुक्त करने जैसे काम बल्कि सत्ता की खातिर अपराधी दाग़ी लोगों को अपने दल में शामिल करने का काम किया बल्कि जब भी सत्ताधारी दल के नेताओं ने हिंसा और नफरत फ़ैलाने वाले ब्यान भाषण दिए खामोश होकर उनको बढ़ावा देने का काम किया। देश के सबसे बड़े पद पर रहते झूठ को सच सच को झूठ साबित करने को उचित अनुचित की चिंता नहीं की अचानक देशवासिओं को एक साथ खड़े होने का सबक सिखा रहा है।
मगर बस नौ मिंट की बात है और दिखाना किसे है जब खुद आप हम जानते हैं कितने साथ साथ हैं। कभी गांव भर इक साथ होता था फिर गली के लोग फिर संयुक्त परिवार साथ साथ हुआ करता था अब भाई भाई क्या पति पत्नी किसी विषय पर एकमत नहीं होते आपस में तकरार बिना कारण होती है मगर रहना साथ साथ है। ईश्वर तो एक है सभी जानते हैं फिर भी हम मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे बनाते हैं और अपने अपने धर्म को औरों से अच्छा साबित करते हैं। शायर कहता है " जब हक़ीक़त है कि हर ज़र्रे में तू रहता है , फिर ज़मीं पर कहीं मंदिर कहीं मस्जिद क्यों है। क्रिकेट के खेल और 15 अगस्त 26 जनवरी वाली देशभक्ति नहीं वास्तविक देशभक्ति हर देशवासी को हमेशा अपना और अपने समान समझने की वास्तिक एकता होनी चाहिए। क्या ऐसा नहीं होगा कि नौ मिंट रौशनी करने में भी हम एक दूसरे को गलत समझने की बात को भूल जाएं , और उसने दिया जलाया उसने मोमबत्ती उसने टॉर्च या फोन मगर किसकी रौशनी किस का समय किस का तरीका सही था हर कोई यही देखता समझता वास्तविक मकसद से भटका हो।
देश की एकता वास्तविक होनी चाहिए जो कुछ मिंट का दिखावा नहीं असली हो। जब कोई किसी पर अन्याय करे जब कोई भी विपदा में हो जब कोई भी भूखा हो बेबस हो जब कोई भी अकेला हो बेबस हो हम बढ़कर उनका हाथ थामकर अपना बनाएं। मगर हम तो हर दिन आपसी अनावश्यक मुकाबले में हर किसी को पीछे छोड़ने को लगे रहते हैं हमने साथ साथ चलने का ढंग सीखा कब है। अपने पक्षिओं जानवरों को साथ साथ उड़ते देखा है बिना टकराए बिना किसी की राह में टंगड़ी लगाए सुविधा से। हम समझते हैं किसी को नीचे दिखला कर हम बड़े बन जाते हैं और ऐसा आचरण करने के बाद सबसे बड़ा झूठ ये आडंबर करना है कि हम साथ साथ हैं।
शायर बशीर बद्र जी की ग़ज़ल पेश है :-
मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला ,
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे ,
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था ,
फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।
खुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैंने ,
बस एक शख़्स को मांगा मुझे वही न मिला।
बहुत अजीब है ये कुर्बतों की दूरी भी ,
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।
मगर बस नौ मिंट की बात है और दिखाना किसे है जब खुद आप हम जानते हैं कितने साथ साथ हैं। कभी गांव भर इक साथ होता था फिर गली के लोग फिर संयुक्त परिवार साथ साथ हुआ करता था अब भाई भाई क्या पति पत्नी किसी विषय पर एकमत नहीं होते आपस में तकरार बिना कारण होती है मगर रहना साथ साथ है। ईश्वर तो एक है सभी जानते हैं फिर भी हम मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे बनाते हैं और अपने अपने धर्म को औरों से अच्छा साबित करते हैं। शायर कहता है " जब हक़ीक़त है कि हर ज़र्रे में तू रहता है , फिर ज़मीं पर कहीं मंदिर कहीं मस्जिद क्यों है। क्रिकेट के खेल और 15 अगस्त 26 जनवरी वाली देशभक्ति नहीं वास्तविक देशभक्ति हर देशवासी को हमेशा अपना और अपने समान समझने की वास्तिक एकता होनी चाहिए। क्या ऐसा नहीं होगा कि नौ मिंट रौशनी करने में भी हम एक दूसरे को गलत समझने की बात को भूल जाएं , और उसने दिया जलाया उसने मोमबत्ती उसने टॉर्च या फोन मगर किसकी रौशनी किस का समय किस का तरीका सही था हर कोई यही देखता समझता वास्तविक मकसद से भटका हो।
देश की एकता वास्तविक होनी चाहिए जो कुछ मिंट का दिखावा नहीं असली हो। जब कोई किसी पर अन्याय करे जब कोई भी विपदा में हो जब कोई भी भूखा हो बेबस हो जब कोई भी अकेला हो बेबस हो हम बढ़कर उनका हाथ थामकर अपना बनाएं। मगर हम तो हर दिन आपसी अनावश्यक मुकाबले में हर किसी को पीछे छोड़ने को लगे रहते हैं हमने साथ साथ चलने का ढंग सीखा कब है। अपने पक्षिओं जानवरों को साथ साथ उड़ते देखा है बिना टकराए बिना किसी की राह में टंगड़ी लगाए सुविधा से। हम समझते हैं किसी को नीचे दिखला कर हम बड़े बन जाते हैं और ऐसा आचरण करने के बाद सबसे बड़ा झूठ ये आडंबर करना है कि हम साथ साथ हैं।
शायर बशीर बद्र जी की ग़ज़ल पेश है :-
मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला ,
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे ,
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था ,
फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।
खुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैंने ,
बस एक शख़्स को मांगा मुझे वही न मिला।
बहुत अजीब है ये कुर्बतों की दूरी भी ,
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।
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