अप्रैल 29, 2020

क्यों हंसे सोचा रोने के बाद ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

      क्यों हंसे सोचा रोने के बाद ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया 

कभी रोने लगे किसी बात पर , 
मुस्कुराने लगे फिर ये सोचकर 
 
आती है मिलन की मधुर बेला , 
विदाई  दुल्हन की होने के बाद । 
 
चार दिन के मुसाफिर रहे साथ , 
चल दिए भविष्य की मंज़िल को 
 
राह अपनी अपनी को जाना है ,  
मोड़ से अलविदा कहने के बाद । 
 
मिलना और बिछुड़ना है ज़िंदगी , 
बहती नदी निरंतर बहे जाती है 
 
कितना लंबा  सफर भूल जाती , 
सागर में अपने समाने के बाद । 
 
हम लोग दोहराते हैं इसको भी , 
ख़ुशी की बात पर अश्क बहाते हैं 
 
और हंसते भी हैं कितनी बार फिर  , 
दर्द ए दिल की दवा पाने के बाद ।
 
दोस्त कितने बनाते हर रोज़ ही ,
जाने समझे बिना खुश होकर भी
 
टूट जाता नाता छोड़ देते हैं फिर 
वक़्त बुरा जब आज़माने के बाद । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: