क्यों हंसे सोचा रोने के बाद ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
कभी रोने लगे किसी बात पर ,
मुस्कुराने लगे फिर ये सोचकर
आती है मिलन की मधुर बेला ,
विदाई दुल्हन की होने के बाद ।
चार दिन के मुसाफिर रहे साथ ,
चल दिए भविष्य की मंज़िल को
राह अपनी अपनी को जाना है ,
मोड़ से अलविदा कहने के बाद ।
मिलना और बिछुड़ना है ज़िंदगी ,
बहती नदी निरंतर बहे जाती है
कितना लंबा सफर भूल जाती ,
सागर में अपने समाने के बाद ।
हम लोग दोहराते हैं इसको भी ,
ख़ुशी की बात पर अश्क बहाते हैं
और हंसते भी हैं कितनी बार फिर ,
दर्द ए दिल की दवा पाने के बाद ।
दोस्त कितने बनाते हर रोज़ ही ,
जाने समझे बिना खुश होकर भी
टूट जाता नाता छोड़ देते हैं फिर
वक़्त बुरा जब आज़माने के बाद ।
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