जून 01, 2025

POST : 1977 कहां है सीमा उलझन आन पड़ी ( चिंतन - मनन ) डॉ लोक सेतिया

  कहां है सीमा उलझन आन पड़ी  ( चिंतन - मनन ) डॉ लोक सेतिया 

हद के भीतर रहना ज़रूरी है , माना बात कहना मज़बूरी है लेकिन आपसी तालमेल रखना है दिल से दिल मिलते नहीं हमेशा ख़त्म नहीं होती बीच की दूरी है । किस सीमा तक संयम रखना है कब कहां धैर्य और साहस की बीच की इक रेखा है हमने क्या समझा है कितना देखा है । दोस्ती हमको निभानी है अपनी अहमियत बचानी है आपका दर्द समझना है हमसे भी खफ़ा खफ़ा ज़िंदगानी है । अभी तलक हमने यही नहीं जाना है ज़ुल्म सहना है हर किसी का बस किसी तरह नाता बचाना है ये कैसा याराना है हमको खोना है उनको पाना है । आज सच को सच कहना है झूठ से आज टकराना है , छोड़ना हर इक बहाना है । हमने प्यार मुहब्बत में दरिया समंदर पार किए कितने भंवर कितने तूफ़ान रास्ते में खड़े थे टकराये भी कभी डूबे भी दुनिया ने भी अपनी नफरतों की इंतिहा कर दी हमको इक कश्ती बादबानी दी और हवाओं को छीन लिया । 
 
हद के अंदर हो नज़ाक़त तो अदा होती है , हद से बढ़ जाये तो आप अपनी सज़ा होती है , इतनी नाज़ुक ना  बनो , हाय इतनी नाज़ुक ना बनो । जिस्म का बोझ उठाये नहीं उठता तुमसे , ज़िंदगानी का कड़ा बोझ सहोगी कैसे । तुम जो हलकी सी हवाओं में लचक जाती हो , तेज़ झौंकों के थपेड़ों में रहोगी कैसे । ये ना समझो कि हर इक राह में कलियां होंगी , राह चलनी है तो कांटों पे भी चलना होगा । ये नया दौर है इस दौर में जीने के लिये , हुस्न को हुस्न का अंदाज़ बदलना होगा । कोई रुकता नहीं ठहरे हुए रही के लिए , जो भी देखेगा वोह कतरा के गुज़र जायेगा । हम अगर वक़्त के हमराह ना चलने पाये , वक़्त हम दोनों को ठुकरा के गुज़र जायेगा । फिल्म वासना , साहिर लुधियानवी का गीत याद आया है , खुद को वक़्त के अनुसार बदलना है वक़्त कभी किसी की खातिर नहीं बदलता है । दर्द जब हद से बढ़ जाता है कहते हैं दवा बन जाता है मगर ऐसा अभी हुआ तो नहीं दर्द की हद क्या है उम्र भर कौन कैसे इंतज़ार करे । भरी दुनिया में क्या कोई नहीं जो हमको समझे और प्यार करे । तू प्यार का सागर है तेरी इक बूंद के प्यासे हम । बस और नहीं ।  
 
शराफ़त की हद होती है , सियासत ने सभी सीमाओं का उलंघन किया है लोकतंत्र को छलनी कर जनता को देश समाज को बर्बाद कर संविधान न्याय को बदहाल किया है । शासकों प्रशासकों के गुनाहों का कौन हिसाब करेगा क्या भगवान सभी ज़ालिमों को माफ़ करेगा अगर ऐसा हुआ तो किस दुनिया में कोई इंसाफ़ करेगा । सरकारों धनवानों और प्रशासनिक अधिकारियों कर्मचारियों की मनमानी और अपना कर्तव्य नहीं निभाने की शैली पर रोक नहीं है जैसा चाहा था हमारा देश वैसा लोक नहीं है । दोस्ती प्यार रिश्ते संबंध से सामाजिक आचरण तक सभी से हर शख़्स परेशान निराश है क्योंकि सभी ने मर्यादाओं नैतिक मूल्यों का परित्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी का दामन थाम लिया है किसी को डुबोकर खुद अपनी नैया पार लगाने का दौर है । आखिर इक ग़ज़ल सुनाता हूं ।  
 
 

सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं ( ग़ज़ल )  

डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

 

सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं
पौंछकर आंसू सभी , अब मुस्कुराना चाहता हूं ।

ज़िंदगी भर आपने समझा मुझे अपना नहीं पर
गैर होकर आपको अपना बनाना चाहता हूं ।

दोस्तों की बेवफ़ाई भूल कर फिर आ गया हूं
बेरहम दुनिया को फिर से आज़माना चाहता हूं ।

किस तरफ जाना तुझे ,अब रास्ते तक पूछते हैं
बस यही कहता हूं उनको इक ठिकाना चाहता हूं ।

आप मत देना सहारा ,जब कभी गिरने लगूं मैं
टूट जाऊं ,बोझ खुद इतना उठाना चाहता हूं ।

आपसे कैसा छिपाना ,जानता सारा ज़माना
सोचता हूं आज लेकिन क्यों दिखाना चाहता हूं ।

नाचते सब लोग "तनहा" तान मेरी पर यहां हैं
आज कठपुतली बना तुमको नचाना चाहता हूं । 
 
 तु प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम - Tu Pyar Ka Sagar Hai Teri  Ek Boond Ke Pyaase Hum - YouTube

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