जून 08, 2025

POST : 1983 शोध प्यार के फूलों पर ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      शोध प्यार के फूलों पर ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

पीएचडी के लिए इक छात्र ने ये विषय चुना है उसने अपनी नानी से कभी इक कहानी सुनी थी कोई पौधा होता था जिस पर प्यार के फूल खिलते थे और समय आने पर खूब फलता फूलता था दो तरह के फल लगते थे भाई बहन कहलाते थे ।  पूरी की पूरी कहानी दो लोगों के प्रेम से विवाहित जीवन को दर्शाती थी लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्यार के फूलों के खिलने का मौसम और मुहब्बत के गुलशन में बहार आने की बात को लेकर छात्र को ज़रूरी लगा तो उसने तलाश करना शुरू किया कहीं ऐसा कोई फूल खिला दिखाई दे जाये । छात्र ने अपने मामा जी से पूछा आपको माता जी ने कुछ पहचान बताई होगी अगर याद है तो मुझे आसानी होगी । मामा जी कुछ दार्शनिक प्रकार के थे उन्होंने समझाया नानी दादी की कहानियां वास्तविक जीवन में नहीं मिलती हैं उनकी काल्पनिक सपनों की दुनिया हुआ करती थी जिस में परियां झरने पंछी चिड़िया फूल बंदर रहते थे । बाद में कुछ कवियों ने कविता लिखी प्रेम को पवित्र भावना बतलाया तो कुछ लिखने वालों ने प्यार को त्याग का नाम देकर उसे भगवान बनाया । प्यार वास्तव में धरती पर नहीं पैदा हुआ था कोई उस को स्वर्ग से लेकर आया और धरती को बड़ा खूबसूरत बनाने को अपना मकसद बनाकर जीवन बिताया । जाने कहां से कोई आया जो नफरतों की आंधी साथ लाया उसने प्यार के फूलों को मसला कुचला उस गुलशन को तबाह बर्बाद किया और अपना इक महल बनाकर खिलखिलाया । 
 
कितनी किताबें पढ़ कर दुनिया भर में प्यार की निशानियां ढूंढ ढूंढ देख समझ कर शोधग्रंथ बनाया है अभी तक उसको ढाई आखर का मतलब नहीं समझ आया है । खुद उसने इस बीच किया प्यार और धोखा खाया है खुद जिस को नहीं समझ पाए दुनिया को समझाया है । कभी लोग नासमझ थे नादान थे दुनियादारी से बिल्कुल अनजान थे कोई अपना था न ही पराया था जिस किसी ने बात की सभी को अपनाया था । प्यार क्या होता नफरत कैसे कोई नहीं जानता था घर गली गांव बस्ती सभी की बात सच है हर कोई मानता था । झूठ बोलना पाप कहलाता था हर आदमी ईमान से रखता नाता था । मगर इक दिन किसी वीराने में कोई चमकदार चीज़ नज़र आई थी बस उसी देख नीयत डगमगाई थी अपनी सभी ने बतलाई थी जानते हैं क्या थी वो चीज़ झूठ की परछाई थी । अचानक किसी ने किसी को पास बुलाया था सभी को बताना हमारी बनाई हुई है ये उसको अपना साथी बनाया था । प्यार के रिश्ते की शुरुआत झूठ से होती है ये हक़ीक़त है सच बोल कर कोई किसी से मुहब्बत नहीं कर सकता है , मुझे दुनिया में सबसे अच्छे आप लगते हो तुमसे बढ़कर सुंदर कोई भी नहीं है । प्यार का पहला सबक यही है दो लोगों को लगा दुनिया की सबसे कीमती चमकीली चीज़ हमको मिली है और दोनों उसी को संभालने संवारने लगे रहे उम्र भर । 
 
दुनिया सतरंगी नहीं बहुरंगी अतरंगी है , हर कोई उसी तरह की चीज़ पाने की कल्पना करने लगा और किसी ने कहा है फ़िल्मी डायलॉग है ' इतनी शिद्दत से मैंने तुम्हें पाने की कोशिश की है , की हर ज़र्रे ने मुझे तुमसे मिलाने की साज़िश की है ।  कमाल ऐसा हुआ कि जिसको जो मिला उसने उसे ही मुहब्बत नाम दे दिया और ऐसे सभी को जैसी पसंद थी वैसी मुहब्बत की कली मिलती रही खिलती गई । प्यार ही प्यार हर तरफ सभी की झोलियां भरी हुई थी , लेकिन आपसी संबंधों में बीच में तकरार आई और कभी प्यार कभी तकरार होना विवाहित होने की निशानी बन गया । लोग बदले दुनिया बदलती रही और इंसान की चाहत भी फ़ितरत भी बदलतने लगी लोग आपस में नहीं ज़माने की बातों को चाहने लगे , इस जगह आने तक कितने ही ज़माने लगे । दौलत शोहरत ताकत हासिल करने को प्यार को ठोकर लगाने लगे ऐसे लोग अपनी कोई नई दुनिया अलग बसाने लगे कभी उस तरफ कभी इस तरफ आने जाने डगमगाने लगे ज़रा सी हलचल से डगमगाने लगे ।    
 
शायद कोई दर्पण था जिस ने दुनिया को उलझाया हर शख़्स ने देखा खुद पर इतना प्यार आया मुझसे प्यारा और न कोई गीत गुनगुनाया । भगवान ने इक जैसा हर इक इंसान बनाया मगर अपनी शक़्ल देख सभी को महसूस हुआ वही विधाता है अहंकार ने खुद को ख़ुदा से बड़ा समझा कोई ये खेल नहीं समझ पाया । किसी को सत्ता ने पास बुलाया कुर्सी पर बैठा है आदमी जहां से हुआ पराया उसने चाबुक से शेर को पिंजरे में कैद कर दिखाया तो उसका जादू सभी को बहुत भाया । शासक का तराज़ू था दौलत और मुहब्बत दोनों पलड़ों पर रख कर देखा दौलत का पलड़ा भारी था जितने भी बार आज़माया । प्यार बिकने लगा कीमत चुकाकर बोली पर ख़रीददार ख़रीद लाया , इक दिन किसी ने मुहब्बत का बाज़ार लगाया क्या अपना क्या पराया । प्यार एक से नहीं हज़ार से हो सकता है जिस किसी को जितना मिले थोड़ा है पाकर फिर खो सकता है । आगे बहुत कुछ है पर आखिरी अध्याय पर आते हैं आपको अंजाम ए इश्क़ की व्यथा बताते हैं । 
 
ये इक्कीसवीं सदी है प्यार मुहब्बत इक खिलौना है , हर कोई समझता है करना है नहीं होना है , कौन मुकाबिल है क्या पाने की आरज़ू है सोच समझ कर साफ साफ बात करते हैं । भविष्य की रूपरेखा क्या क्या शर्त है पहले जानते समझते हैं तभी इक दूजे के होते हैं । समझदार हो गए हैं चलता फिरता आजकल लोग इश्तिहार हो गए हैं । आदमी औरत नहीं प्यार जानवर से होने लगा है मत पूछना ज़ालिम बोझ कैसा सर पर ढोने लगा है । वो पहले सी मुहब्बत कोई मांगता नहीं है हर कोई व्यस्त है इतनी फुर्सत ही किसी को नहीं है , जब तक साथ निभाए कोई उपकार समझना है उम्र भर कौन देता साथ ये नाता बेकार समझना है ।  अब कभी सूखे हुए फूल किताबों में नहीं मिलते हैं कागज़ के फूल जिधर देखो खिलते हैं बिखरते हैं ज़रा से झौंके से तेज़ हवा के आंधी तूफ़ान का हाल ना पूछो , शोध ने किया जो कमाल ना पूछो । बस इतना समझ लो ये सबक पढ़ना लाज़मी है , मिल जाएं आप गर तो किस बात की कमी है । 
 
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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Achcha aalekh aaj ke sandarbh me..Jisko jo mila usne use pyar ka naam...👍👌