हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा (ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझादुःख दर्द भरी लहरों में साहिल नहीं समझा ।
दुनिया ने दिये ज़ख्म हज़ार आपने लेकिन
घायल नहीं समझा हमें बिसमिल नहीं समझा ।
हम उसके मुकाबिल थे मगर जान के उसने
महफ़िल में हमें अपने मुकाबिल नहीं समझा ।
खेला तो खिलोनों की तरह उसको सभी ने
अफ़सोस किसी ने भी उसे दिल नहीं समझा ।
हमको है शिकायत कि हमें आँख में तुमने
काजल सा बसाने के भी काबिल नहीं समझा ।
घायल किया पायल ने तो झूमर ने किया क़त्ल
वो कौन है जिसने तुझे कातिल नहीं समझा ।
उठवा के रहे "लोक" को तुम दर से जो अपने
पागल उसे समझा किये साईल नहीं समझा ।
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