जुलाई 31, 2012

एक पत्नी ने बनवाया नया इक ताज ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

 एक पत्नी ने बनवाया नया इक ताज  ( कविता )  डॉ लोक सेतिया

बनवाया होगा
किसी बादशाह ने
अपनी मुमताज के नाम
कोई ताजमहल
मुझे नहीं है
उसे देखने की
कोई चाहत।

मगर चाहता हूँ
किसी दिन मैं
जा कर देख आऊं
उस
ह्युम्निटी हस्पताल को। 

जिसे बनवाया है
एक मज़दूर की पत्नी ने
पति की याद में
पति के बिना इलाज
मरने के बाद।

अपने बेटे को
अनाथालय में भेजकर
की तपस्या
अपने सपने को
पूरा करने की
डॉक्टर बनाया उसको
ऐसा अस्पताल
बनाने के लिए।
 
ताकि अब और
किसी गरीब को
पैसा पास न होने के कारण
कोई कर न सके
इलाज से इनकार। 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: