जुलाई 26, 2012

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई
ज़िंदगी तुझ से डर गया कोई।

तेज़ झोंकों में रेत के घर सा
ग़म का मारा बिखर गया कोई।

न मिला कोई दर तो मज़बूरन
मौत के द्वार पर गया कोई।

खूब उजाड़ा ज़माने भर ने मगर
फिर से खुद ही संवर गया कोई।

ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है
उसपे इल्ज़ाम धर गया कोई।

और गहराई शाम ए तन्हाई
मुझको तनहा यूँ कर गया कोई।

है कोई अपनी कब्र खुद ही "लोक"
जीते जी कब से मर गया कोई।   
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

ज़िन्दगी तुझसे डर गया कोई...👌👍