जुलाई 25, 2012

है अधूरी कहानी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

      है अधूरी कहानी ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

ज़िंदगी  नहीं है
कागज़ पे लिखी 
पर्दे पर दिखाई गई  
कोई पटकथा।

जिसे ले जाता है
मनचाहे अंत तक
लिखने वाला लेखक  
भटकने नहीं देता
कहानी के पात्रों को।

बचाये रखता है
अपने पात्रों के
वास्तविक चरित्र को
संबल बन कर।

छोड़ दिया है शायद
अकेला और बेसहारा 
विधाता ने
जीवन में हर पात्र को।

भटक जाती है ज़िंदगी 
धूप - छावं में
अनजान पथ पर चलते हुए
बार बार।

जाने कब कहाँ कैसे
भटक जाते हैं सभी पात्र
सही मार्ग से जीवन में।

सभी करते रह जाते हैं प्रयास 
कहानी को उचित परिणिति तक
ले जाने का
मगर आज तक
पहुंचा नहीं पाया कोई भी
पूर्णता तक उसको।

रह गयी है अधूरी
सब के जीवन की
वास्तविक कहानी
त्रिशंकु बन कर रह गये  हैं
जीवन में तमाम लोग।

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